"मैं भागी नहीं थी माँ" आठ कहानियों से सजा हुआ संग्रह
बहुत खर्चीली होती हैं न औरतें!अपने सपनों को अपने रिश्ते बचाने के लिए खर्च कर देती हैं।अपनी रुह के तिनकों को समेट कर समाज में अपने लिए ऐसा आशियाना तलाशती रहतीं हैं जहाँ उन्हें कोई स्त्री समझें।रहस्यमयी होती हैं औरतें।इनके भीतर अनेक राज छिपे होते हैं लेकिन अपनी चाहत के सिलबट्टे से इन राज का चूरा बनाती औरतें पुरुषों के मन में चुपचाप बैठ जाती हैं जहाँ पर पुरुष निकल कर भी निकल नहीं पाता।
"मैं भागी नहीं थी माँ" आठ कहानियों से सजा हुआ संग्रह समाज उसमें जीने वाले ऐसे लोगों की कहानी है जो आप सबसे अपने दिल की हर बात कहना चाहते हैं।
यह संग्रह स्त्री और पुरुष के उन मनोभावों की कहानियां कह रहा है जिसमें प्रेम भी है रहस्य भी।अपराध भी और पीड़ा भी।
आशा करती हूँ आप सभी का प्यार इस संग्रह को मिलेगा।
पृष्ठ संख्या- 144
प्रकाशन वर्ष- 2022
प्रकाशक- वनिका पब्लिकेशन
मूल्य- 250
अमेजॉन और प्रकाशक के माध्यम से खरीदा जा सकता है।
https://www.amazon.in/dp/B0BM9FLSZG?ref=myi_title_dp