हिंदी दिवस : औपचारिकता क्यों?

 कमल मित्तल 

किसान चिंतक एवं वरिष्ठ पत्रकार 




    15अगस्त1947 को भारत को आजादी मिलने के दो साल बाद 14 सितबंर 1949 को संविधान सभा में एक मत से हिंदी को राजभाषा घोषित किया गया था। इस निर्णय के बाद हिंदी को हर क्षेत्र में प्रसारित करने के लिए राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, वर्धा के अनुरोध पर 1953 से पूरे राष्ट्र में 14 सितंबर को हर साल हिंदी दिवस के रूप में मनाया जाने लगा।

विविधताओं के देश भारत में हिंदी भाषा ही लोगों को एकता के सूत्र में पिरोती दिखाई देती है। यह दुनिया भर में बसे भारतीयों को भावनात्मक रूप से एक साथ जोड़ने का काम भी करती है। इसी अहमियत को ध्यान में रखकर हर साल 10 जनवरी का दिन विश्व हिन्दी दिवस  के तौर पर मनाया जाता है। पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने हिन्दी के प्रचार-प्रसार के लिए 2006 में प्रति वर्ष 10 जनवरी को हिन्दी दिवस मनाने की घोषणा की थी।

14 सितंबर हो या 10 जनवरी हिंदी दिवस या विश्व हिंदी दिवस मात्र औपचारिकता बनकर रह गया है ।सरकारी कार्यालयों में जहां सरकार द्वारा यह निर्देश दिया जाता है कि अपना कार्य अधिक से अधिक मातृभाषा हिंदी में करें लेकिन कर्मचारी किसी भी विभाग का हो वह हिंदी में कार्य करने में शर्म महसूस करता है और अपने आप को हिंदी में कार्य करने में पिछला महसूस करता है वही  केंद्र सरकार की पेपर लैश कार्य करने की नीति,ऐ आजकल के माहौल में आफिसों का कंप्यूटरीकृत होना हिन्दी दिवस के आड़े आता दिखाई देता है ।कंप्यूटर से अधिकांश कार्य अंग्रेजी भाषा में ही किया जाता  है, ऐसे में मातृभाषा हिंदी को हम कैसे शिखर पर स्थापित करें यह सवाल लगता मन में हलचल पैदा करता है।

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