सरकारी कमेटी के नाम पर किसानों की आंख में धूल झोंकने की कोशिश कर रही सरकार: सवित
किसान यूनियन के राष्ट्रीय अध्यक्ष चौधरी सवित मलिक ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 19 नवंबर को तीन काले कानून रद्द करते वक्त अपनी घोषणा में जिस कमेटी का वायदा किया था आखिर उसकी घोषणा हो गई है। 12 जुलाई को सरकार द्वारा बनाई गई इस समिति का नोटिफिकेशन आज सार्वजनिक हो गया है।
संयुक्त किसान मोर्चा ने शुरू से ही इस कमेटी को लेकर अपने संदेह सार्वजनिक किए हैं:
इस कमेटी के अध्यक्ष और सदस्य कौन होंगे? कहीं इसमें सरकार का बोलबाला तो नहीं रहेगा?
इसमें संयुक्त किसान मोर्चा को के अलावा अन्य किन किसान संगठनों को बुलाया जाएगा? कहीं सरकार अपने पिठ्ठुओं से तो इसे नहीं भर देगी?
इस कमेटी का एजेंडा क्या होगा? क्या इसमें एमएसपी को कानूनी दर्जा देने पर विचार भी होगा? या कि इसे बातचीत से भी बाहर रखा जाएगा?
कमेटी के सरकारी नोटिफिकेशन से यह स्पष्ट है कि इस बारे में संयुक्त किसान मोर्चा के सभी संदेह सच निकले है:
१. कमेटी के अध्यक्ष पूर्व कृषि सचिव संजय अग्रवाल हैं जिन्होंने तीनों किसान विरोधी कानून बनाए और आखिर तक उनकी हिमायत की। उनके साथ नीति आयोग के सदस्य रमेश चंद हैं जिन्होंने इन तीनों कानूनों को ड्राफ्ट किया था।
२.कमेटी में संयुक्त किसान मोर्चा के 3 प्रतिनिधियों के लिए जगह छोड़ी गई है। लेकिन बाकी स्थानों में किसान नेताओं के नाम पर सरकार ने अपने 5 वफादार लोगों को ठूंस लिया है जिन सबने खुलकर तीनों किसान विरोधी कानूनों की वकालत की थी। यह सब लोग या तो सीधे बीजेपी आरएसएस से जुड़े हैं या उनकी नीति की हिमायत करते हैं।
• कृष्णा वीर चौधरी, भारतीय कृषक समाज से जुड़े हैं और बीजेपी ज्वाइन कर चुके हैं
• प्रमोद कुमार चौधरी, RSS से जुड़े भारतीय किसान संघ की राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य
• गुणी प्रकाश, भूपेंद्र मान के किसान संगठन के हरियाणा अध्यक्ष
• सैयद पाशा पटेल, महाराष्ट्र से बीजेपी के एमएलसी रह चुके हैं
• गुणवंत पाटिल, शेतकरी संगठन से जुड़े, डब्ल्यूटीओ के हिमायती और भारतीय स्वतंत्र पक्ष पार्टी के जनरल सेक्रेटरी।
यह पांचो लोग तीनों किसान विरोधी कानूनों के पक्ष में खुलकर बोले थे।
3. कमेटी के एजेंडा में एमएसपी पर कानून बनाने का जिक्र तक नहीं है। यानी कि यह प्रश्न कमेटी के सामने रखा ही नहीं जाएगा। एजेंडा में कुछ ऐसे आइटम डाले गए हैं जिन पर सरकार की कमेटी पहले से बनी हुई है। और एक ऐसा आइटम डाला गया है जिसके जरिए सरकार पिछले दरवाजे से वापस तीन काले कानूनों को लाने की कोशिश कर सकती है।
संयुक्त किसान मोर्चा ने 3 जुलाई की राष्ट्रीय बैठक फैसला लिया था कमेटी का पूरा ब्यौरा मिलने से पहले उसमें शामिल होने का सवाल ही नहीं होता। अब इस पर अंतिम निर्णय मोर्चे को ही करना है। लेकिन मुझे व्यक्तिगत रूप से लगता है कि ऐसी कमेटी में जाने का कोई अर्थ नहीं है। हमे इस कमेटी के खिलाफ अवाज उठानी चाहिए।