23 अक्टूबर को दूसरी सशस्त्र क्रांति दिवस घोषित करे सरकार: डॉ. नीरज

 

मेरठ। हमें दूसरी सशस्त्र क्रांति दिवस के रूप में 23 अक्टूबर को मनाना चाहिए। केंद्र सरकार को भी इस दिवस का संज्ञान लेकर इसे दूसरे सशस्त्र क्रांति दिवस के तौर पर घोषित करना चाहिए, क्योंकि यही वो भारत के लिए ऐतिहासिक तारीख है, जिस दिन नेता जी सुभाष चंद्र बोस ने 1943 में सिंगापुर की पावन भूमि से सशस्त्र क्रांति का जय घोष अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ किया था। उक्त बातें गणेश शंकर विद्यार्थी सुभारती पत्रकारिता विभाग में डीन प्रोफेसर डॉ. नीरज कर्ण सिंह ने शनिवार को कही।

गणेश शंकर विद्यार्थी सुभारती पत्रकारिता एवं जनसंचार विभाग में स्थापित सुभाष चंद्र बोस शोधपीठ द्वारा आयोजित द्वितीय सशस्त्र स्वतंत्रता क्रांति दिवस कार्यक्रम का आयोजन शनिवार को किया गया था। डॉ. सिंह ने विभाग के विद्यार्थियों को संबोधित करते हुए कहा कि 21 अक्टूबर 1943 को नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने सिंगापुर की पावन धरा से भारत की आजादी की यूं हीं घोषणा नहीं कर दी थी। इसके पीछे एक बहुत बड़ा कारण था। उस समय संयुक्त राष्ट्र के चार्टर के अनुसार गुलाम देश को अगर नौ देशों ने आजादी की मान्यता दे दी तो साम्राज्यवादी राष्ट्र को उस गुलाम देश को स्वतंत्र करना पड़ता था। संयुक्त राष्ट्र के चार्टर के कुछ मानदंड भी थे। जैसे उस गुलाम देश के पास अपनी स्वतंत्र भूमि होनी चाहिए। उस देश का अपना विधान होना चाहिए। सरकार की कार्यपरिषद होनी चाहिए। अपनी फौज होनी चाहिए। अपनी मुद्रा और बैंक भी होना चाहिए। रेडियो डाक सेवा यह सभी उस गुलाम देश के पास होना चाहिए तभी उसे स्वतंत्र माना जाएगा। जापान ने अंडमान निकोबार द्वीप समुह को नेता जी को इसी लिए उस समय दिया। नेताजी की आजाद हिंद सरकार के पास अपनी फौज भी थी। अपना रेडियो भी था। डाक सेवाए बैंक सेवाए मुद्रा आदि भी थे। फिर भी मन के काले अंग्रेजो ने भारत को आजाद नहीं माना। अंदर ही अंदर अंग्रेज भारत के बंटवारा और नेताजी के हत्या की योजना बना रहे थे। फिर नेता जी ने 23 अक्टूबर 1943 को दूसरे सशस्त्र क्रांति की घोषणा कर दी। उन्होंने कहा कि नेताजी सुभाष चंद्र बोेस कोई और नहीं स्वामी विवेकानंद जी का दूसरा जन्म था। इस अवसर पर विभाग की अकादमीक समन्वयक डॉ. गुंजन शर्मा, सहायक प्राध्यापिका प्रीति सिंह सहित सभी विद्यार्थी व कर्मचारी उपस्थित थे।

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