अशुद्ध हिंदी बोलने पर हमें दुख क्यों नहीं होता

 मीडिया में रहते हुए भाषा के साथ खिलवाड नहीं करना चाहिए: सईद अंसारी

- भाषा की विश्वसनीयता खत्म करने के जिम्मेदार हम



 मेरठ। मीडिया में रहते हुए भाषा के साथ खिलवाड नहीं करना चाहिए। भाषा की विश्वसनीयता खत्म करने के जिम्मेदार हम मीडियाकर्मी ही हैं। भाषा के संस्कारों को समाप्त किया है हमने, आने वाली पीढ़ियों के अपराधी हैं हम। बोलने और लिखने में विकृति पैदा कर दी है हमने। हमें अशुद्ध हिन्दी बोलते समय दुख क्यों नहीं होता। हमें अपनी अपनी भाषा से प्रेम खत्म हो गया है। जब कोई अशुद्ध हिन्दी बोलता है तो हम उसे हीन दृष्टि से देखते हैं, जबकि अच्छे हिन्दी के शब्दों से मुंह सिकोड़ लेते हैं। यह बात तिलक स्कूल ऑफ मॉस कम्यूनीकेशन द्वारा मीडिया की भाषाः प्रवृतियां और विश्वसनीयता विषय पर आयोजित वेबिनार के दौरान मुख्य वक्ता आज तक चैनल के सीनियर एंकर सईद अंसारी ने कही।

सईद अंसारी ने कहा कि वह दिन दूर नहीं जब हिन्दी भाषा पर खतरा पैदा हो जाएगा। हिन्दी भाषा को हम तोड़-मरोड़ के पेश करते हैं। अपनी भाषा को हमने अपंग बना दिया है। क्योंकि हमारी पढ़ने, लिखने व सीखने की आदत खत्म हो गई है। हिन्दी का दोष क्या है जो उसको नष्ट कर रहे हैं हम। अंग्रेजी का गलत शब्द बोलने पर हमको अफसोस होता है लेकिन हिन्दी का गलत शब्द बोलने पर क्यों नहीं होता। भाषा सभी सीखनी चाहिए, लेकिन अपनी भाषा को कभी नहीं भूलना चाहिए। खिचड़ी भाषा का प्रयोग न करे। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि माखन लाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो0 केजी सुरेश ने कहा कि भाषा का तो संकट है, जिस हिन्दी को हम सदियों से बोलते आए हैं, उसका हम हिन्दी दिवस मनाते है, जबकि राजभाषा दिवस मनाना चाहिए। हिन्दी के प्रति उदासीनता पैदा हो गई है। पत्रकारिता में साहित्य की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। पहले समाचार पत्र में उसको स्थान मिलता था। हिंग्लिश एक बीमारी की तरह फैल गई है। जन साधरण को अंग्रेजी भाषा समझ में नहीं आती है। जबकि भारतीय भाषाएं इतनी संपन्न है कि किसी और भाषा का वहां कोई स्थान ही नहीं है। उन्होंने कहाकि डिजिटल में सभी भाषाओं के साथ अत्याचार हो रहा है। पत्रकारिता में शब्दों की उपलब्धता है, प्रचलित भाषा का प्रयोग हमको करना चाहिए। वर्तमान में हम पढे़ बगैर लिख रहे हैं और सुने बगैर बोल रहे हैं। भारतीय पत्रकारिता जमीन से जुड़ी हुई है। कहा कि मीडिया की भाषा उन्माद, आक्रमकता नहीं है बल्कि संयम और संतुलन की भाषा होनी चाहिए। नकारात्मकता की भाषा नहीं बोलनी चाहिए। जनता की मीडिया से बहुत अपेक्षाएं है। कार्यक्रम की अध्यक्षता कर है चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो0 नरेंद्र कुमार तनेजा ने कहा कि मीडिया महत्वपूर्ण निर्धारक है। समय परिवर्तित हो चुका है, शिक्षा का इतना प्रसार हो चुका है कि लौकिक जगत में लोगों को स्थान देना होगा। देश के विकास के लिए यह बहुत आवश्यक है। क्योंकि लोगों में विश्लेषण की शक्ति जागृत हो चुकी है, सनसनीखेज और उत्तेजनात्मक समाचार से लोग ऊबने लगे हैं। समाज और राष्ट्र में अच्छा भी हो रहा है, अतः सकारात्मकता को प्रोत्साहन देना चाहिए। प्रो0 प्रशांत कुमार ने सभी का स्वागत किया। विभाग के छात्र योगेश ने सभी का धन्यावाद ज्ञाापित किया। कार्यक्रम का संचालन विभाग की छात्रा यशी चौधरी ने किया। कार्यक्रम में डॉ0 मनोज श्रीवास्तव, लव कुमार, अमरीश पाठक, मोतिहारी विश्वविद्यालय बिहार से डॉ0 साकेत रमण, मिजोरम विश्वविद्यालय से डॉ॰ धीरज, लखनऊ से डॉ॰ संदीप, बीनम यादव, राकेश, उपेश दीक्षित, मितेंद्र कुमार गुप्ता आदि मौजूद रहे।

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