किसान को मिला है, मिला भी नही है.. विडंबना यही है....!

डॉ. फलकुमार पंवार
कोरोनावायरस महामारी के इस दौर में तमाम मुल्क अपने देश के लिए अपने बजट का बड़ा हिस्सा खर्च कर रहे हैं ताकि उनका देश इस कोरोनावायरस महामारी के संकट से बाहर निकल सके। 
भारत भी इससे अछूता नहीं है उसने अपनी जीडीपी का 10 फीसदी हिस्सा मतलब 20 लाख करोड़ रूपया कोरोनावायरस महामारी के संकट से निकलने के लिए किसान मजदूर उद्यम आदि पर खर्च करने का फैसला किया है।इस कड़ी में बड़ा सवाल है कि प्रधानमंत्री द्वारा जारी किए गए 2000000 करोड के पैकेट जिसे राहत पैकेज कहा जा रहा है वह किसानों के लिए राहत पैकेज है या एक बजट का हिस्सा मात्र है।अगर विपक्ष की हैसियत से कहे तो किसान को इस पूरे राहत पैकेज में कुछ भी हासिल नहीं हुआ और अगर सत्तारूढ़ दल की नजर से देखते हुए कहे तो किसान की बल्ले बल्ले हो गई है।
परंतु वास्तविकता यह है कि सरकार दावे भले ही कुछ भी करें परंतु किसान के हिस्से में सीधे तौर पर कुछ भी नहीं आया है।यह 20 लाख करोड़ का बजट जिसमें किसान के लिए 4 से 5 लाख करोड रुपए  प्रदान करने की बात की जा रही है वह फौरी तौर पर किसान की क्रय शक्ति बढ़ा सकें, उसे कुछ सीधे तौर पर नकदी दे सके ऐसा देखने को नहीं मिला।
हालांकि सरकार का दावा है कि उसने कोरोना महामारी के इस दौर में 63 लाख किसानों को 86,600 करोड रुपए का ऋण दिया है।1 मार्च से 30 अप्रैल के बीच में 25 लाख किसान क्रेडिट कार्ड कार्ड बनाए हैं।
 2 महीने के अंतर्गत ही फसल बीमा दावे के अंतर्गत 6400 करोड रुपए का फसल बीमा भुगतान किया है। और लगभग 74,300 करोड रुपए नगद देकर किसान से कृषि उत्पाद खरीदे हैं।
वही 3 करोड़ छोटे लघु सीमांत किसानों के लिए ₹30 हज़ार करोड़ रुपये के ऋण का प्रावधान किया गया है जो नाबार्ड के बजट घोषणा 90 हज़ार करोड़ से अलग है। किसानों को लिए गए ऋण पर 3 महीने की छूट दी गई है वही क्रॉप लोन जमा करने की तारीख भी 31 मई कर दी गई है।
 इस राहत पैकेज को प्रस्तुत करते हुए वित्त मंत्री सीतारमण ने कहा है कि इससे किसानों के हालात बदलेंगे। उन्होंने एम एफ़ आई( माइक्रो फुल इंटरप्राइजेज) के लिए ₹10,000 करोड़ देने की बात कही है ताकि विभिन्न उत्पादों को को ब्रांड का नाम किया जा सके, जैसे केसर, आम, मखाने, गुड़ आदि।
 पशुधन के लिए 28 हजार 343 करोड रुपए जारी करने की बात कही है जिसमें एनिमल हसबेंडरी के लिए ही 15000 करोड और पशुओं को तमाम तरह के टीकाकरण के लिए 13,343 करोड़ रुपये देने की बात कही है।
 मधुमक्खी, मुर्गी पालन, मत्स्य आदि के लिए भी प्रावधान किए गए हैं।
परंतु कुल मिलाकर तमाम चीजों को देखने के बाद यह दिखता है कि सरकार ने जो किसानों को भंडारण में 50 फ़ीसदी सब्सिडी देने की बात कही है वह एक उचित कदम है।वही आवश्यक वस्तु अधिनियम में संशोधन करने की बात करते हुए अपनी फसल, अपने उत्पाद को देश में कहीं भी बेच देने का जो खुलापन दिया है वह भी लंबे समय से चली आ रही किसान संगठनों की मांग पूरी करने का कार्य है जो कि एक अच्छा कदम है।कुल मिलाकर यह एक राहत पैकेज कम मगर आने वाले समय में किसान को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा का एक कदम कहा जा सकता है।
बुराई और अच्छाई के बीच में वित्त मंत्री को इस 20 लाख करोड़ के पैकेज में इतना अवश्य करना था कि कृषि उत्पाद पर जीएसटी ना लगे, किसानों को मिलने वाले खाद के कट्टे पर सब्सिडी मिले, उनसे कुछ समय के लिए बिजली और अन्य लिए गए कृषि उपकरण, कर्ज़ आदि पर ब्याज माफ किए जाएं।
चीनी मिल पर बकाया भुगतान को तत्काल किसान के खाते में भिजवाया जाए।
कोरोनावायरस जैसी महामारी से निपटने के लिए खाद्यान्न की कमी केवल किसान के चलते ही नहीं हुई। और देश इस लड़ाई को आराम से लड़ता दिख रहा है और सरकार बेफिक्री से गरीबों के घर में अनाज भेज रही है। ऐसे में फिलहाल खरीदे गए गेहूं पर किसान को प्रति कुंतल ₹200 का बोनस देने की भी जरूरत थी।
कर्ज माफी कोई विकल्प नहीं है यह सत्य है।
परंतु सीधे तौर पर किसान के हाथ में कुछ आना चाहिए यह भी जरूरी था।
यह भी एक सत्य है कि लोक डाउन से जहां पूरा देश प्रभावित हुआ है वहीं  कृषि क्षेत्र की अर्थव्यवस्था को केवल 20 से 30 फीसदी  प्रभावित किया है क्योंकि तमाम ग्रामीण अंचल खुले रहे हैं, कृषि उत्पाद बिके हैं। फसल बोने, काटने ले जाने पर कोई प्रतिबंध नहीं रहा है। किसान ने चीनी मिलों को गन्ना देकर अपना भुगतान वहां भी खड़ा कर दिया है और इस दरमियान सरसों, गेहूं, दाल आदि नगदी में बेचकर कुछ धन प्राप्त भी किया है।
 हालांकि हमेशा की तरह उसे अपनी फसल का वाजिब दाम नहीं मिला है।
 फिर भी देश की अर्थव्यवस्था का बड़ा दारोमदार कृषि पर है और कृषि से जुड़े लोगों को अधिक आत्मनिर्भर और सक्षम बनाना देश की सरकार का पहला दायित्व है।
 कुल मिलाकर यह राहत पैकेज कम एक ऐसे बजट का हिस्सा जरूर है जो निकट भविष्य में सुखद स्थिति दिखा सकता है।
 हां यह जरूर है कि एक बार फिर इस पूरी प्रक्रिया में किसान को कर्ज देने का अधिक प्रयास किया जा रहा है और जिस तरह हिंदुस्तान में नोटबंदी को पूरे बैंक तंत्र ने प्रभावित किया था।
उसी तरह से किसान को मिलने वाले तमाम कर्ज़ बैंक की अव्यवस्था, भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ जाते हैं।
वह भी सत्य है कि किसानों को केसीसी पर मिलने वाले ऋण का एक बड़ा हिस्सा वह फसल उत्पादन के लिए बिजली, खाद, पानी, कृषि उपकरण आदि पर खर्च करने की जगह मकान बनाने, बाइक खरीदने, विवाह करने बच्चों को पढ़ाने, बीमारी में लगाने के साथ सस्ती दर पर ऋण ले महंगी दर पर ब्याज पर दुसरो को दे देता है जो अक्सर डूब जाता है जिससे उसकी आमदनी नहीं बढ़ पाती और वह कर्ज के जाल से मुक्त नहीं हो पाता और स्थिति यह हो जाती है कि 50 लाख की जमीन पर लिए गए 5 लाख के कर्ज को  समय से चुका नहीं पाता फिर जो कर्ज़ बढ़कर 10 से 15 लाख हो जाता है और उसकी जमीन बिकेगी यह सोचकर 1 दिन आत्महत्या कर लेता है।


विकास बालियान
(देहाती फिल्म कलाकार हैं और विभिन्न किसान संगठनों से लंबे समय तक जुड़े रहे हैं, कृषि विषय के अच्छे जानकार है)


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