नन्द की सिसौली में असामान्य हालात के लिए जिम्मेवार कौन? कमल मित्तल
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रख्यात, किसान मसीहा स्वर्गीय चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत की जन्मस्थली कस्बा सिसौली जिसे कालांतर में शिवपुरी वह नन्द की सिसौली के नाम से भी जाना जाता था और जिसके निवासियों का गोत्र रघुवंश है, आज एक ऐसे मुहाने पर खड़ी है जिसमें लोग अपने घरों में कैद हैं और पशुओं के लिए भी हरे चारे का संकट है।
वैश्विक बिमारी कोरोनावायरस पॉजिटिव एक महिला मरीज मिलने के चलते और कुछ नासमझ सत्ताधारी लोगों की हठधर्मिता के चलते सिसौली में पिछले तीन दिन से पूर्ण कर्फ्यू की स्थिति है ।
भारत के शहरों में पिछले वर्षों में अशांति व तनाव के कारण कर्फ्यू लगा लेकिन कस्बा सिसौली शांति और सौहार्द की मिसाल बनकर निकला। पूर्व में किसान मसीहा स्वर्गीय चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत और बाद में चौधरी नरेश टिकैत ने सिसौली में सामान्य स्थिति बनाए रखने में अपनी अपना पूरा योगदान दिया और लोगों के बीच रहकर सिसौली और आसपास के गांव को आग में नहीं झुलसने दिया।
वर्ष 2013 में जब मुजफ्फरनगर जनपद में संप्रदायिक दंगे की ज्वाला इस कदर भड़की हुई थी की हालात बिल्कुल सामान्य थे। ऐसी विषम परिस्थितियों में चौधरी नरेश टिकैत नेआसपास के क्षेत्र में कोई बड़ी घटना नहीं होने दी और बड़ी सावधानी के साथ स्थानीय लोगों का सहयोग लेकर सिसौली कस्बे को शांति और सौहार्द की मिसाल के रूप में स्थापित किया।
अब जबकि पूरी दुनिया कोरोना वायरस जैसी खतरनाक बीमारी की चपेट में है और उसमें सिसौली का नाम आना, सिसौली के लिए काला अध्याय के समान है । भारत के प्रधानमंत्री ने पूरे देश में 24 मार्च से लोक डाउन का ऐलान किया हुआ है और हम फिर भी सावधानी ने बरते ,इसके लिए कहीं ना कहीं सत्ताधारी दल की ठनक व नासमझ युवाओं की अज्ञानता इसका कारण है ।
भारत सरकार द्वारा सभी तरह के प्रचार साधनों द्वारा, सोशल मीडिया द्वारा लगातार हमें यह बताने का प्रयास किया जा रहा है कि हमें भीड़ इकट्ठी नहीं करना है, हमें भीड़ का हिस्सा नहीं बनना है ,लेकिन फिर भी हम भीड़ का हिस्सा बन जाते हैं और उस भीड़ के कारण इतनी बड़ी विकट समस्या हमारे सामने खड़ी हो जाती है कि नंद की सिसौली नाम से विख्यात कस्बा सिसौली में अमन, चैन, शांति सब कुछ भंग हो जाता है। लोगों का जीना दूभर हो जाता है। पशु भूख के मारे बेहाल हैं। यह एक ऐसी परिस्थिति है ,जिसमें निम्न वर्ग के लोग समाज और सरकार की सहायता से मिल रहे भोजन आदि को स्वीकार कर अपना जीवन यापन कर रहे हैं। वही किसान, नौकरी पेशा व व्यपारी वर्ग अपने बलबूते अपनी जीविका चला रहे हैं। लेकिन ऐसे में दिक्कत उन मध्यम वर्गीय परिवारों को बहुत ज्यादा है जिन परिवारों के आय स्रोत सीमित है और वह सरकार या समाज की सहायता लेने में हिचकते हैं ,ऐसे में उन लोगों को मुश्किल से एक टाईम भोजन मिलना भी मुश्किल हो रहा है।
(लेखक कमल मित्तल)