पहले नज़र के तीर को दिल पर चलायेगा, फिर हाले दिल वो पूछेगा और मुस्कुरायेगा।।
हिन्दी -उर्दू साहित्यिक संस्था समर्पण की मासिक गोष्ठी का आयोजन डॉक्टर आस मुहम्मद अमीन के निवास पर रहमत नगर मुज़फ़्फ़रनगर में किया गया ।अध्यक्षता ईश्वर दयाल गुप्ता गीतकार व संचालन डाक्टर आस मुहम्मद अमीन ने किया ।गोष्ठी में आऐ मुख्य अतिथि मास्टर मुहम्मद शोएब और डाक्टर सैफ़ुलहक़ साहब ने भी अपने ख़ूबसूरत विचार रखे । गोष्ठी में तशरीफ़ लाये सभी कवियों और शायरों ने अपनी शायरी से समां बांध दिया ।ऐक से बढ़कर शायरी सुनने को मिली ।
जुनैद अज़हर साहब ने फ़रमाया :--दुशमन से अपने हाथ मिलाते कहाॅ -कहाॅ ।
ज़ुलमत में हम चराग़ जलाते कहाॅ -कहाॅ ।।
जब ज़िन्दगी को हार के आना था कब्र में ।
आबे हयात ढूंढने जाते कहाॅ -कहाॅ ।।
अल्ताफ़ मशअल साहब ने कहा :--जो उठाता है क़दम माँ की इजाज़त के बग़ैर ।जीना मुमकिन ही नही उसका निदामत के बग़ैर ।।
पुष्पा रानी ने कहा :--खिल गयी थी जीवन की सुनहरी भोर यूं ।
जैसे बगिया में खिलखिलाती कली यूं ।।
मास्टर मुस्तफ़ा कमाल ने कहा :--वफ़ा का नग़मा सुना ही नही है तेरे बाद ।
सुकून दिल को मिला ही नही है तेरे बाद ।।
तहसीन क़मर असारवी ने कहा :--हम बज़ाहिर तो अपने घर में रहे ।
उम्र गुज़री है क़ैद ख़ाने में ।।
विजया गुप्ता जी ने कहा :--बड़े जतन से रखा था ख़्वाब पलकों में ।
लुटेरा बन के वक़्त लूट गया शायद ।।
विनय लक्ष्मी भटनागर जी ने कहा :--गीत खोया सा था चाल थी अनमनी ।
राह में एक दिन रागिनी मिल गयी ।।
कलीम वफ़ा ने कहा :--हर सितम भूल के दुशमन को दुआ दी मैंने ।
दुश्मनी जा तेरी बुनियाद हिला दी मैंने ।।
लकी फ़रूक़ी हसरत साहब ने कहा :--वो लौट आये नदी से बिन नहाये ।
तडप कर रह गया पानी वग़ैरा ।।
मिज़ाह के शायर मास्टर शौकत फ़हमी न कहा :--सरवट में, सूजडू में कि मिमलाना रोड पर ।
होती है आज देखिये हमको सहर कहाॅ ।।
डॉक्टर आस मुहम्मद अमीन ने कहा :--ख़ुद को मुश्किल में डालते क्यूँ हो ।
दिल में अरमान पालते क्यूँ हो ।।डाक्टर वीना गर्ग जी ने कहा :--बड़े भले थे वे दिन भी जब माँ की चिट्ठी आती थी ।
उनके नेह -प्रेम की गगरी, मुझ पर आ छलकाती थी ।।
राम कुमार रागी जी ने कहा :--शमां पर जो मर मिटता है।उसका नाम पतंगा है ।।
सच्चा हिन्दुस्तानी वो है ।
जिसके हाथ तिरंगा है ।।
अहमद मुज़फ़्फ़रनगरी ने कहा :--पहले नज़र के तीर को दिल पर चलायेगा ।
फिर हाले दिल वो पूछेगा और मुस्कुरायेगा।।
संतोष कुमार फ़लक़ ने कहा जितने अहले ज़र्फ़ थे, सब चुप रहे लेकिन ।
सूखे हुऐ पत्तों ने बहुत शोर मचाया ।।
मीरा भटनागर जी ने कहा :--कौन कहता है झुर्रियां हैं ये, बूढी माँ के चेहरे पर ।
इतिहास है जीवन का, ज्यामिति है अनुभवों की ।।
उस्ताद शायर अब्दुल हक़ सहर साहब ने फ़रमाया :--ये दुनिया हाथ लग जाये कभी मुमकिन नही नादाॅ ।
नदी सूखी है काॅटा डालने से कुछ नही होगा ।।
ईश्वर दयाल गुप्ता ने कहा :--मन्दिर -मस्जिद, घर पूजा के ।
तेरा धाम, मुहब्बत है ।।
आखिर में डाक्टर आस मुहम्मद अमीन ने सभी मेहमानों का शुक्रिया अदा किया ।