क्या बला है एंजियोग्राफी, बता रहे है-डॉ अनुभव सिंघल एमडी मेडिसिन (गोल्ड-मेडल) डीएम कार्डियोलॉजी (एसजीपीजीआई, लखनऊ) विभागाध्यक्ष - हृदय रोग सुभारती मेडिकल कॉलेज, मेरठ
एंजियोग्राफी क्या बला है ?
दिल को सप्लाई करने वाली 3 नसो (कोरोनरी-आर्टरी) में सिकुड़न (ब्लॉकेज) की स्थिति जानने के लिए एंजियोग्राफी (कोरोनरी आर्टरी एंजियोग्राम या सी.ए.जी या एन्जियो), की जाती है। जिन मरीजों को तेज चलने में छाती में जकड़न (स्टेबल एंजाइना) या बैठे-बैठे सीने में तेज दर्द हो (एक्यूट-कोरोनरी-सिंड्रोम या ए.सी.एस या हार्ट-अटैक) अथवा जहां छाती के दर्द के कारण में कंफ्यूजन हो वहां एंज्योग्राफी कराने की सलाह दी जाती है।
कैसे करते हैं एन्ज्योग्राफी?
मरीज़ को ऑपरेशन-थिएटर नुमा कक्ष (कैथलैब) में एक लंबी टेबल पर लिटा दिया जाता है, टेबल के ऊपर लगी एक्सरे नुमा मशीन से दिल की नसों में दौड़ते हुए खून की लाइव रिकॉर्डिंग अलग अलग एंगल से की जाती है।
पहले मरीज की कलाई या जांघ की नस के आसपास के पार्ट को सुन्न कर देते हैं जिससे मरीज को कोई भी दर्द ना हो, मरीज पूरे होश में रहता है एवं बातचीत कर सकता है। इसके बाद उस नस में एक महीन खोकला तार (कैथेटर) डालकर दिल के पास, जहां से नसें निकलती है वहां पहुंचाया जाता है, उस खोखले तार के बाहर वाले छोर से दवा डाली जाती है जो तार के दूसरे छोर से निकलकर एवं दिल की नसों के खून में मिलकर, नसों में प्रवाहित होती है। इस दवा के फ्लो की वीडियो रिकार्डिंग की जाती है। इसे इस तरह समझें जैसे किसी ट्रांसपेरेंट पाइप के अंदर काले रंग का पानी डालकर उसे बाहर से देखा जाए तो उसमें पानी का पूरा फ्लो दिखेगा, परंतु यदि पाइप अंदर से कहीं भी संकरा है तो वह बाहर से उस भाग मे पतला दिखेगा, अगर कहीं अत्यधिक संकरा है (जैसे 99 परसेंट) तो दूसरे छोर पर रंगीन पानी धीरे-धीरे या पहुंचेगा, अगर सौ परसैंट बंद है तो फ्लो आगे दिखेगा ही नही।
कुल मिलाकर एन्ज्योग्राफी शुरू होने के बाद 5 मिनट से लेकर आधा घंटे तक का समय लग सकता है। एन्ज्योग्राफी मात्र से नसें नहीं खुलती।
जिन मरीजों के गुर्दे कम काम कर रहे होते हैं(बढा क्रिएटनीन) , जैसे लंबी - अनियंत्रित शूगर मे, उनमें एंज्यो के बाद गुर्दे की गड़बड़ी या डायलिसिस की जरूरत पड़ सकती है,क्योंकि नसों में डाली जाने वाली दवा(डाई) गुर्दों के माध्यम से यूरीन मे बाहर निकलती है।ऐसे मरीजों को एन्ज्यो से पहले एवं बाद मे प्रॉपर हाइड्रेशन दिया जाता है।
रेडियल या फीमोरल ?
एंजियोग्राफी भी दो प्रकार से की जा सकती है हाथ(कलाई) की पतली नस के माध्यम से (रेडियल) या पैर(जांघ) की मोटी नस के माध्यम से(फीमोरल)।ज्यादातर अस्पतालो मे अब भी यही पैर वाला(फीमोरल) पुराना तरीका चलन में है क्योंकि पुराने डॉक्टर इसी ट्रेनिंग के हैं किंतु इसमें मरीज की जांघ की मोटी नस से खून बहने,थक्का जमने(हिमेटोमा बनने) का खतरा रहता है एवं मरीज को भी 4-6 घंटे बिना पैर हिलाए लेटे रहना पड़ता है इस दौरान खाने-पीने, टॉयलेट इत्यादी की परेशानी झेलनी पडती है एवं आराम भी ज्यादा करना पड़ता है।
वहीं कलाई की नस से मरीज को खून निकलने,दर्द होने,लेट कर आराम करने की आवश्यकता नहीं होती एवं एन्जियोग्राफी के तुरंत बाद ही अस्पताल से छुट्टी हो जाती है। नॉर्मल एन्जियो है तो मरीज खुद ही अपनी बाइक या कार चला कर काम पर लौट सकता है। हाथ वाला तरीका अत्यधिक आरामदेह, सेफ, बिना झंझंट वाला एवं पेशेंट-फ्रैंडली है।परंतु एन्जियोग्राफी कौन से तरीके से होगी यह आपके डॉक्टर की ट्रेनिंग पर निर्भर है जो जिस टैक्निक में कंफर्टेबल हो उसे उसी तरीके से एन्ज्योग्राफी करनी चाहिए।
आजकल एंजियोग्राफी कराने में रिस्क न के बराबर होता है, ज्यादातर प्राइवेट सैंटरो पर यह आठ से दस हजार रूपये मे की जाती है। परमानेंट रिकॉर्ड के लिए एन्ज्यो की सीडी अवश्य लेनी एवं संभालकर रखनी चाहिए। यह सीडी, कंप्यूटर पर कुछ विशेष सॉफ्टवेयर डाउनलोड करने के बाद ही देखी जा सकती है, जो कि सामान्यतः कार्डियोलॉजिस्ट या कैथ लैब के कंप्यूटर में ही होते हैं।
सीटी एन्ज्योगाफी क्या होती है?
हालांकि बिना तार डाले दिल की नसों में ब्लॉकेज जानने का तरीका है। परंतु काफी केसिज़ मे गलत रिजल्ट देने के कारण यूज़ से लगभग बाहर हो चुका है।
डॉ अनुभव सिंघल
एमडी मेडिसिन (गोल्ड-मेडल) डीएम कार्डियोलॉजी (एसजीपीजीआई, लखनऊ) विभागाध्यक्ष - हृदय रोग
सुभारती मेडिकल कॉलेज