सनसनीखेज न हो आत्महत्या की मीडिया कवरेज

 Noida.


(रविता)चिकित्सा, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग और सेन्टर फार एडवोकेसी एंड रिसर्च के तत्वावधान में मंगलवार को यहां एक स्थानीय माँल में स्वास्थ्य संचार सुद्ढ़ीकरण कार्यशाला आयोजित की गयी। कार्यशाला में मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रमों व योजनाओं के बारे में मीडिया प्रतिनिधियों का संवेदीकरण किया गया। खासकर आत्महत्या जैसी घटनाओं की कवरेज करते समय जरूरी सावधानियों पर न केवल बल दिया गया बल्कि इस संबंध में डब्लूएचओ और प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया की ओर से जारी की गई गाइड लाइन पर भी चर्चा हुई। सीफार के अलावा स्वास्थ्य विभाग की ओर से भी इस बात पर जोर दिया गया कि आत्महत्या की घटना की कवरेज सनसनीखेज न बनाई जाए। कार्यशाला में मुख्य चिकित्सा अधिकारी डा. अनुराग भार्गव ने आत्महत्या की बढ़ती प्रवृति पर चिंता जाहिर करते हुए बड़े ही सरल अंदाज में यह समझाने की कोशिश की कि रास्ते कभी बंद नहीं होते और हर आदमी को सब कुछ मिलना संभव भी नहीं है। इसलिए यदि कोई रास्ता बंद होता दिखे तो उसका विकल्प तलाशें। किसी भी तरह की मानसिक परेशानी होने पर मानसिक स्वास्थ्य विभाग में संपर्क करें, जहां निशुल्क उपचार के अलावा रोगी की पहचान भी गुप्त रखी जाती है। सीएमओ ने अपील की है कि कहीं भी किसी को हताहत देखें तो 108 नंबर पर एंबुलेंस को कॉल अवश्य कर दें। आपको पुलिस को भी सूचित करने की जरूरत नहीं है।कार्यशाला में मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम के नोडल अधिकारी डा. भारत भूषण ने बताया जनपद में 2016 से मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम चलाया जा रहा है। आजकल मानसिक तनाव हर स्तर पर देखा जाता है। स्कूल जाने वाले बच्चों का अपना तनाव है, उसके बाद घर चलाने का तनाव। इसीलिए मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम की जरूरत महसूस की गई। मानसिक विकार भी अन्य विकारों की ही तरह हैं और इनका उपचार भी है। स्वास्थ्य विभाग दुआ से दवा तक एक कार्यक्रम चला रहा है। इस कार्यक्रम के जरिए हम मंदिरों और मजारों आदि पर जाकर लोगों को समझाते हैं कि दुआएं अपनी जगह हैं लेकिन दवा भी जरूरी है। उन्होंने बताया जिले में जल्द ही एक हेल्पलाइन जारी की जाएगी और एक मनकक्ष स्थापित किया जाएगा।सीफार से सुश्री आरती धर ने एक प्रजेंटेशन दिया। उनकी पूरी बात सीफार के नदीम ने पीपीटी (प्रजेंटेशन) के माध्यम से समझाने का प्रयास किया। प्रजेंटेंशन में आत्महत्या की खबरें कवर करने के लिए डब्लूएचओ और प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया की गाइडलाइन की जानकारी दी गई। साथ ही यह बताने का प्रयास किया गया कि इस तरह की खबरें बहुत विस्तार से न लिखी जाएं। जैसे आत्महत्या करने के तरीके आदि का जिक्र कतई न करें। साथ ही ऐसी खबरों के हैडिंग भी सनसनी फैलाने वाले न हों। कोशिश यह रहे कि खबर से उस व्यक्ति को उलझन से बाहर निकालने के रास्ते का विकल्प लोगों के सामने रखा जाए। 


आईएमए के सचिव और साइकेट्रिस्ट डा. सुनील अवाना ने मानसिक रोगियों के अधिकारियों पर चर्चा की। साथ ही उन्होंने यह भी बताया कि 20 से 25 फीसदी मरीजों को कोई न कोई मानसिक रोग होता है। इतना ही नहीं छह से सात फीसदी बच्चे भी मानसिक रोगों की चपेट में हैं। मानसिक बीमारी भी अन्य बीमारियों की ही तरह है और अन्य बीमारियों की ही तरह ही इसका उपचार भी संभव है।


मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम में मनोरोग परामर्शदाता डा. तनुजा गुप्ता ने मानसिक विकारों में आने वाली तमाम बीमारियों की जानकारी दी। उन्होंने कहा कि किसी भी बीमारी की जितनी जल्दी पहचान और उपचार संभव हो, उतना बेहतर है। मानसिक बीमारी के मामले में भी यही बात सटीक बैठती है। शुरूआत में दवा के बिना केवल थेरेपी से भी बीमार ठीक हो सकता है और आत्महत्या मानसिक बीमारियों की परिणति है। उन्होंने एनजाइटी के लक्षणों पर चर्चा करते हुए कहा कि चिंता, घबराहट, पसीना आना, बुरा होने का डर सताना, बेवजह की चिंता और मुंह सूखना इसके लक्षण हो सकते हैं। अच्छी खबर मिलने पर खुशी न हो तो यह अवसाद हो सकता है। 


उन्होंने बताया कि ऊंचाई, पानी या फिर भीड़ से डर लगना भी एक तरह की मानसिक बीमारी है।ओवेसिव कंपलसिव डिस्ऑर्डर के बारे में बताते हुए कहा कि कई बार लोग ताला बंद करके बार-बार उसे चेक करते हैं, इसके अलावा कुछ लोगों को बार-बार हाथ धोने की आदत हो जाती है, यह भी एक मानसिक रोग है और इन सब बीमारियों का उपचार जिला मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम के तहत निशुल्क उपलब्ध है। एसीएमओ डा. वीबी ढाका ने मानसिक रोगों के बारे में विस्तार से जानकारी दी। कार्यशाला में मीडियाकर्मियों के अलावा एसीएमओ डा. नेपाल सिंह, डा. शिरीष जैन, डा. अर्चना सक्सेना, डा. शशि आर्य और मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम से साइक्रेट्रिक सोशल वर्कर रजनी सूरी, क्लीनिकल साइकोलोजिस्ट नीति सिंह, आईएमए से डा. आरके बंसल ने प्रतिभाग किया।


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