घर न द्वार, सुविधा व शिक्षा से दूर बंगाली परिवार

(क़ाज़ी अमजद अली)

मोरना !अलग वेशभूषा, अलग भाषा से पहचान बनाये, घुमन्तु प्रजाति बंगाली समाज की पहचान शिकारियों के रूप में होती है। पिछले कुछ समय में घटी अपराधिक घटनाओं में बंगाली समाज के लिप्त होने के कारण इस समाज के प्रति समाज में दूसरी धारणा पनपती जा रही है। वहीं शिक्षा सहित अन्य सभी सुविधाओं से दूर बंगाली समाज अपने दिन बहुरने की आस के दिन गुजार रहा है।


मोरना ब्लॉक क्षेत्र के ग्राम योगेन्द्रनगर व कस्बा भोकरहेडी शुकतीर्थ चौरावाला, मोरना आदि गांवों में आबादी से दूर खाली स्थानों पर  पडी हुई झोपडियां तथा झोंपड़ियों के आसपास मिट्टी में खेलते बच्चे तथा  मुर्गी व बकरी आदि जानवरों की उपस्थिति बंगाली समाज के रहन सहन का परिचय देती है। महिलाओं की विशिष्ट पोशाक व अलग अंदाज व समझ में न आने वाली भाषा उन्हें साधारण समाज से अलग करती  है। किसी जमाने में जंगली जानवरों का शिकार कर व भिक्षा मांग कर गुजारा करने वाले इस समुदाय को बदलते दौर की जरूरतों ने  मजदूरी के कार्य की ओर धकेला है  मजदूरी कर पैसा कमाने के लिए बंगाली परिवार गुड कोल्हूओं में गन्ने की पेराई व गुड़ कोल्हुओं की भट्टियों में  ईंधन को झोंकने सहित अन्य छोटे मोटे कार्यों में लगे हुए हैं। सर्दियों के मौसम में गुड कोल्हुओं में मजदूरी करना बंगाली समुदाय के लिए आसान रोजगार है। घर न द्वार कपड़े व पन्नियों से बनी झोंपडी डालकर जीवन व्यतीत करने वाले इस समुदाय की बदतर दशा में कब सुधार होगा। इसकी प्रतीक्षा स्वयं बंगाली परिवारों को भी है। कस्बा भोकरहेडी में लक्सर मार्ग पर स्थित गुड कोल्हू में मजदूरी कर रहे लोकेश बंगाली ने अपनी व्यथा सुनाते हुए बताया कि उसका परिवार दिन रात मेहनत मजदूरी करता है। किन्तु फिर भी वह नरकीय जीवन जीने को मजबूर है। योगेन्द्रनगर में उनका कच्चा घर था, उनकी अनुपस्थिति में शरारती तत्वों के झुण्ड ने उसे तोड डाला है। घर तो समाप्त हो गया किन्तु  विद्युत कनेक्शन होने के कारण बिजली का बिल चालू रहा। कोल्हू संचालक से एक बडी रकम पेशगी में लेकर बिजली के बिल का भुगतान किया गया। कोल्हू में मजदूरी करने के कारण उनके बच्चे भी शिक्षा प्राप्त नहीं कर पा रहे हैं। उनके बच्चों को हीनदृष्टि से देखा जाता है। जिससे वह अन्यों के नजदीक नहीं जाते कुछ अपराधिक व्यक्ति पूरे समाज को बदनाम किये हुए हैं। शिक्षा के अभाव में छोटी छोटी बातों पर अक्सर विवाद हो जाता है। क्षेत्र में लगभग 300 बंगाली परिवार आबाद है। जो अधिकतर मजदूरी कर अपने परिवार का भरण पोषण कर रहे हैं। नई पीढी के बच्चे हालत बदलने के लिए उनसे अनेक सवाल करते हैं। अगर सरकार इस ओर ध्यान दें तो उनके समाज की हालत में सुधार हो सकता है तथा उन्हें भी समाज में सम्मान मिल सकता है, जिसके लिए बंगाली समुदाय तरस रहा है।हाल के दिनों में घटी घटनाओं के कारण उन्हें सन्देह की दृष्टि से देखा जा रहा है कुछ व्यक्तियों ने पूरे समुदाय में असुरक्षा की भावना पैदा कर दी है अब उनके लिये महनत मज़दूरी करना भी मुश्किल हो रहा है सम्मानजनक स्थिति तो बहुत दूर जीवन यापन के भी लाले पड़ रहे हैं..

(लेखक काज़ी अमजद अली शाह टाइम्स में वरिष्ठ पत्रकार है।)

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