चौधरी टिकैत! फर्श से अर्श तक का सफर

युक्ता मित्तल/भाकियू की राजधानी सिसौली से


पूरा देश आज किसानों के मसीहा महात्मा महेंद्र सिंह टिकैत का 84 वा जन्मदिवस सिसौली से लेकर देश भर मना रहा है। सभी सोशल नेटवर्किंग से जुड़े युवा किसान फेसबुक व ट्विटर पर कमेंट व ट्वीट कर महात्मा टिकैत के जन्मदिन के बारे मे विस्तृत रूप से बता रहे है।


महात्मा टिकैत का जन्म 6 अक्टूबर 1935 में  उत्तर प्रदेश के जनपद मुजफ्फरनगर  के सिसौली गाँव में एक जाट परिवार में हुआ था।  1986 में ट्यूबवेल की बिजली दरों को बढ़ाए जाने के ख़िलाफ़ मुज़फ्फरनगर के शामली से एक बड़ा आंदोलन शुरु किया था। जिसमे मार्च 1987 में  प्रसाशन और राजनितिक लापरवाही से संघर्ष हुआ और दो किसानो और पीएसी के एक जवान की मौत हो गयी । इसके बाद महात्मा टिकैत राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा में आये। बाबा टिकैत की अगुवाई में यह आन्दोलन इस कदर मजबूत हुआ कि प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री वीरबहादुर सिंह को खुद सिसौली  में आकर पंचायत को संबोधित करना पड़ा और किसानो के हित मे घोषणाएं करनी पड़ी।भारतीय किसान यूनियन के संस्थापक स्व० महेंद्र सिंह टिकैत , जिन्हें लोग बाबा टिकैत और महात्मा टिकैत के नाम से भी बुलाते थे ,ने इस आन्दोलन के बाद देशभर में घूम घूम कर  किसानो के हक़ के लिए आवाज उठाना शुरू कर दिया । कई बार राजधानी दिल्ली,लखनऊ में भी धरने प्रदर्शन किये गये । हालाकि उनके आन्दोलन राजनीति से दूर हु होते थे ।टिकैत जाटों के रघुवंशी गौत्र से थे ,लेकिन बालियान खाप में सभी बिरादरियां थीं। टिकैत ने खाप व्‍यवस्‍था को समझा और जाति से अलग हटकर सभी बिरादरी के किसानो को साथ लेकर काम करना शुरू किया। किसानो में उनकी लोकप्रियता का ग्राफ बढता ही जा रहा था । 17 अक्‍टूबर 1986 को किसानों के हितों की रक्षा के लिए एक गैर राजनीतिक संगठन 'भारतीय किसान यूनियन' की स्‍थापना की गई। किसानो के लिए लड़ाई लड़ते हुए अपने पूरे जीवन में टिकैत करीब 20 बार से ज्यादा जेल भी गये । लेकिन उनके समर्थको ने उनका भरपूर साथ दिया।अपने पूरे जीवन में उन्होंने विभिन्न सामाजिक बुराइयों जैसे दहेज़ , म्रत्युभोज , अशिक्षा और भ्रूण हत्या जैसे मुद्दों पर भी आवाज उठायी । बाबा टिकैत की पंचायतो और संगठन में जाति धर्म को लेकर कभी भी भेदभाव दिखाई नहीं दिया। जाट समाज के साथ ही अन्य कृषक बिरादरी भी उनके साथ उनके समर्थन में उनके हाथ मजबूत करती रही।
पहले खाद ,पानी ,बिजली की समस्याओं को लेकर जब किसान सरकारी दफ्तरों में जाते तो उनकी समस्याओं को सरकारी अधिकारी गंभीरता से नहीं लेते थे ,महात्मा टिकैत ने किसानो की समस्याओं को जोरदार तरीके से रखना शुरू किया ।1988 में दिल्ली में वोट क्लब में दिए जा रहे एक बड़े धरने को संबोधित करते हुए महात्मा टिकैत  ने कहा था – “इंडिया वालों खबरदार, अब भारत दिल्ली में आ गया है”।
*उनका हल्का सा इशारा चुनाव की दिशा,दशा बदल देता था ।इसी वजह से अधिकतर जनप्रतिनिधि बाबा के यहां हाजिरी देंते रहते थे । सियासी लोग उनके करीब रहने का  बहाना ढूँढ़ते रहते थे।उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री से लेकर कई अन्य कद्दावर नेता भी बाबा के यहाँ आते जाते रहे।लेकिन उनके लिए किसानो की समस्याए और लड़ाई राजनीति से ऊपर रही । बाबा टिकैत ने किसानो की आवाज न सुनने वाले नेताओं के खिलाफ वे सीधे पैनी की ठोड्ड लगाने की बात करते थे।


■अपने अंतिम समय में जब उनका स्वास्थ्य बेहद ख़राब था तो खाप के खिलाप की गयी सुप्रीम कोर्ट की तल्ख़ टिप्पणी पर उन्होंने कहा था कि ★इल्‍जाम भी उनके, हाकिम भी वही और ठंडे बंद कमरे में सुनाया गया फैंसला भी उनका ,लेकिन एक बार परमात्‍मा मुझे बिस्‍तर से उठा दे तो मैं इन सबको सबक सिखा दूंगा कि किसान के स्‍वाभिमान से खिलबाड़ का क्‍या मतलब होता है।


उनका कहना था कि खाप पंचायते किसानो के हक़ की लड़ाई लडती है ,उनकी मांग उठाती है , राजनितिक कारणों से उनकी आवाज को दबाया जा रहा है ।


■किसानो के यह अजीबोगरीब नेता अपने अंतिम समय तक किसानो के हितो के लिए संघर्ष करते रहे ।बिमारी की अवस्था में जब तत्कालीन प्रधानमंत्री ने उन्हें सरकारी खर्च पर दिल्ली में इलाज कराने को कहा तो उन्होंने प्रधानमंत्री जी से कहा कि उनकी हालत ठीक नहीं है और पता नहीं कब क्या हो जाए लेकिन उनके जीते जी अगर केंद्र सरकार किसानो की भलाई के लिए कुछ ठोस कदम उठा दे तो आखिरी समय में वह राहत महसूस कर सकेंगे और उन्हें दिल से धन्यवाद देंगे।


■15 मई 2011 को 76 वर्ष की उम्र में केंसर के कारण महात्मा महेंद्र सिंह टिकैत जी की म्रत्यु  हो गयी और किसानो की लड़ाई लड़ने वाला ये पुर्योध्दा हमेशा के लिए शांत हो गया ।


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