क्या रुके हार्ट को दोबारा चलाया जा सकता है
हेल्थ टिप्स
सीपीआर (कार्डियो पल्मोनरी रिसस्सिटेशन) क्या बला है?
दिल की किसी नस में खून का थक्का बनने से नस बंद हो जाती है(हार्ट-अटैक) एवं दिल का कुछ पार्ट ब्लड सप्लाई न मिलने से डैमेज होने लगता है जिस कारण दिल की धड़कन अनियमित होकर (वीटी/वीएफ) दिल का धड़कना रुक जाता है(कार्डियक अरैेस्ट) जिससे ब्रेन में ब्लड का फ्लो रुक जाता है, अगर तुरंत ही (10 से 20 मिनट के अंदर) हार्ट की पंपिंग दोबारा ना चलाई जाए तो मरीज की मृत्यु (सड़न काॅर्डियक डेथ) हो जाती है।
क्या रूके हुए हार्ट को दोबारा चलाया जा सकता है?
हार्ट-अटैक से अचानक बंद हुए हार्ट एवं मरीज की मृत्यु (ब्रेन-डैड) होने तक के बीच के छोटे से समय (दस से 20 मिनट) में मरीज के छाती के बायीं तरफ(दिल के ऊपर) विशेष मशीन(डी-फिबरिलेटर) से बिजली का झटका देकर (डीसी-शौक/डीफिबरिलेशन), हार्ट की धड़कन को कुछ केसिज़ मे दोबारा से चलाया एवं मरीज को बचाया भी जा सकती है।
क्यों मरीज की छाती बार-बार दबाई जाती है?
परंतु जब तक मरीज को बिजली का झटका देने वाली मशीन उपलब्ध हो (जो के अस्पताल की इमरजेंसी या इमरजेंसी एंबुलेंस में ज्यादातर होती है) तब तक मरीज की बायीं छाती को बार-बार दबाकर (प्रति मिनट लगभग सौ बार), हार्ट को आर्टिफिशियल तरीके से पंप कराते हुए एंबुलेंस या अस्पताल तक पहुंचाया जाता जिससे ब्रेन में खून का दौरा बना रहे। वहां पहुंचते ही मरीज की छाती पर, ईसीजी मॉनिटरिंग के अनुसार डीसी शौक (बिजली का झटका) दिया जाता है एवं बेसुध पड़े मरीज की सांसो को कृत्रिम तरीके से चलाने के लिए एक प्लास्टिक की ट्यूब सांस की नली में डाल दी जाती है (एंडोट्रेकियल इनट्यूबेशन) एवं एक बड़े से गुब्बारे नुमा पम्प(अंबु-बैग) को उस ट्यूब से कनेक्ट कर बार-बार फुला एवं पिचका कर कृत्रिम सांस दिलाया जाता है। इस बीच एक टीम वर्क की तरह काम करते हुए दूसरे डॉक्टर/ स्टाफ, नस में कैनुला लगाकर नोराड्रीनलीन इत्यादि इमरजेंसी दवाओं के इंजेक्शन भी लगाते हैं एवं वेंटिलेटर की उपलब्धता होने पर मरीज को वेंटीलेटर पर शिफ्ट कर दिया जाता है।
आजकल तो यह इमरजेंसी ट्रेनिंग(सी.पि.आर) पैरामेडिकल स्टाफ, पुलिस एवं स्कूलों के कोर्स तक में है।
सीपीआर किस में फायदेमंद नहीं रहतां?
अस्पताल में भर्ती टर्मिनली इल पेशेंट्स जो वेंटिलेटर पर हो अथवा उनके शरीर के गुर्दे, फेफड़े, हार्ट जैसे कईं जरूरी अंग एक साथ काम ना कर रहे हो उनमें सीपीआर का ज्यादातर केसेस में कुछ खास फायदा नहीं होता।
क्या मुंह से मुंह लगाकर सांस देना जरूरी है?
नवीनतम गाइडलाइन के अनुसार सीपीआर में छाती को बार-बार एवं सही तरीके से दबाने पर ही ज्यादा महत्व दिया जाता है मुंह से सांस देने जैसे कम महत्व वाली स्टेप को क्रुशियल टाइम वेस्टेज होने के डर से नही किया जाता।
डॉ अनुभव सिंघल
एमडी मेडिसिन(गोल्ड-मेडल) डीएम कार्डियोलॉजी (एसजीपीजीआई, लखनऊ) विभागाध्यक्ष सुभारती मेडिकल कॉलेज, मेरठ
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