उर्दू डेवलपमेंट आर्गनाइज़ेशन ने PM मोदी को लिखी चिट्ठी.. क्षेत्रीय भाषाओ के संरक्षण की मांग

 


नई दिल्ली। उर्दू  डेवलपमेंट आर्गनाइज़ेशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. सैयद अहमद खान ने भारतीय भाषाओं के संरक्षण और संवर्धन के उद्देश्य से प्रधानमंत्री को एक पत्र लिखा है जिसमें उन्होंने कहा है कि भारत अपनी अनेकों भाषाओं के कारण पूरे विश्व में एक अलग पहचान रखता है। हमारे देश में संविधान द्वारा मान्यता प्राप्त 22 अनुसूचित भाषाएँ हैं, जिनमें से प्रत्येक न केवल संस्कृति और इतिहास का प्रतीक है बल्कि हमारी सामूहिक पहचान का एक महत्वपूर्ण हिस्सा भी है। इन भाषाओं के साथ-साथ देश में बोली जाने वाली अन्य क्षेत्रीय भाषाएँ और बोलियाँ भी हमारी विविधता को समृद्ध करती हैं। उन्होंने इस मामले पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि आजकल कई भाषाएं धीरे-धीरे विलुप्त होने की कगार पर हैं। इसका मुख्य कारण भाषाओं का घटता उपयोग और उन्हें बढ़ावा देने के प्रयासों की कमी है और यदि यही प्रवृत्ति जारी रही तो न केवल भाषाएँ विलुप्त हो जाएँगी बल्कि हमारे देश की अनूठी सांस्कृतिक विविधता पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।

डॉ.खान ने भारत के प्रधानमंत्री से अनुसूचित भाषाओं के प्रचार के लिए सरकारी योजनाओं को और अधिक प्रभावी बनाने का अनुरोध किया। सभी भारतीय भाषाओं को समान रूप से संरक्षित एवं बढ़ावा देने के लिए एक राष्ट्रीय कार्यक्रम लागू किया जाना चाहिए। क्षेत्रीय और अल्पसंख्यक भाषाओं की सुरक्षा के लिए शैक्षणिक संस्थानों और डिजिटल प्लेटफॉर्म पर विशेष प्रयास किए जाने चाहिए। भाषाई अनुसंधान को प्रोत्साहित करने और भाषाओं के साहित्य, व्याकरण और लोक संस्कृति को संरक्षित करने के लिए एक केंद्रीय डेटा सेंटर स्थापित किया जाना चाहिए। युवाओं को भाषाओं से परिचित कराने के लिए एक जन अभियान शुरू किया जाना चाहिए और केंद्र सरकार द्वारा बनाई गई योजनाओं के नाम न केवल हिंदी में बल्कि क्षेत्रीय भाषाओं में भी होने चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि भाषाएं केवल संचार का साधन नहीं हैं, वे किसी समाज के विचार, इतिहास और संस्कृति को भी व्यक्त करती हैं। यदि हम अपनी भाषाओं को बचाने में विफल रहे, तो हम आने वाली पीढ़ियों को उनकी जड़ों से अलग कर देंगे। जिसका परिणाम राष्ट्रीय एकता एवं देशभक्ति के प्रति नकारात्मक होगा। इसलिए, भारत की भाषाई विविधता को संरक्षित और समृद्ध करने के लिए तत्काल और प्रभावी कदम उठाए जाने चाहिए। इससे न केवल हमारी सांस्कृतिक एवं ऐतिहासिक विरासत सुरक्षित रहेगी बल्कि हमारी राष्ट्रीय एकता भी मजबूत होगी।



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