नदलेस ने किया 'एक शाम अनिता भारती के नाम' कार्यक्रम का आयोजन




नदलेस दलित लेखक संघ ने एक शाम अनिता भारती के नाम कार्यक्रम का आयोजन किया। जिसकी अध्यक्षता डा. अनिल कुमार ने की व संचालन डा. अमित धर्मसिंह ने किया। यह कार्यक्रम इसलिए रखा गया कि लंबे समय से चले आ रहे एक ही नाम वाले दो दलित लेखक संघों की वजह पैदा हुआ स्वीकार्यता का संकट आखिरकार हल हो ही गया। साहित्यकारों के बहुमतीय जनाधार ने अनिता भारती वाले दलित लेखक संघ को स्वीकृति दी और दूसरे वाले को दलित लेखक संघ मानने से इंकार कर दिया। ज्ञात हो कि 2019 में दलित लेखक संघ का विभाजन हो गया था। तभी से लेकर दलित लेखक संघ नाम से दो संगठन चले आ रहे थे। जिनकी वजह से स्वीकार्यता, जुड़ने और अध्ययन संबंधी बहुत से संकट पैदा हो गए थे। इनके निदान के लिए नदलेस ने एक मुहिम चलाई और साहित्यकारों के मत और विचारों वाला एक प्रस्ताव पत्र तैयार किया। करीब पचास पेज़ से अधिक वाले इस प्रस्ताव पत्र में सैकड़ों साहित्यकारों ने दलित लेखक संघ के रूप में अनिता भारती वाले दलित लेखक संघ के रूप में स्वीकार किया और दूसरे वाले को सिरे से खारिज कर दिया। इस उपलक्ष में नदलेस की ओर से दलित लेखक संघ की वर्तमान अध्यक्ष अनिता भारती पर केंद्रित कार्यक्रम "एक शाम अनिता भारती के नाम ( अनिता जी की कहानी उन्हीं की जुबानी)" रखा गया। जिसमें उपस्थित सभी साहित्यकारों ने अनिता भारती जी को हार्दिक बधाई दी। कार्यक्रम के आरंभ में डा. अमित धर्मसिंह ने अनिता भारती जी से उनके जीवन और साहित्यिक सफर के विषय में प्रश्न किए और अनिता जी ने उनके यथासंभव जवाब प्रस्तुत किए। इस संवाद से अनिता भारती जी की साहित्यिक और सामाजिक सेवाओं के विभिन्न पक्ष खुलकर सामने आए। तत्पश्चात, डा. गुलाब सिंह, पुष्पा विवेक, मुकेश मिरोठा, अरुण कुमार राजन तनवर और आर एस आघात आदि साहित्यकारों ने विषय से संबंधित सारगर्भित टिप्पणियां प्रस्तुत की। साथ ही, सभी साहित्यकारों ने तय किया कि आज से छद्म दलित लेखक संघ के साथ किसी भी प्रकार की रचनात्मक गतिविधियां नहीं अपनाई जाएंगी। सभी ने माना कि अच्छा हुआ कि एक ही नाम के दो दलित लेखक संघों वाली समस्या का समुचित निदान हो गया। नदलेस के साथ-साथ अनिता भारती जी ने प्रस्ताव पत्र में दर्ज जनाधार का आभार व्यक्त किया और माना कि हमें, गलत के खिलाफ इसी तरह एकजुट रहकर कार्य करने की आवश्यकता है। अध्यक्षता कर रहे डा. अनिल कुमार ने कहा कि आज का यह कार्यक्रम निश्चित रूप से ऐतिहासिक कार्यक्रम रहा। दो दलित लेखक संघों की वजह से उपजी प्रत्येक समस्या का आज समाधान हो गया है। सभी साहित्यकारों ने जिस तरह से इस मुहिम में भागीदारी निभाई, वह काबिले तारीफ है। वास्तव में बहुमतीय जनाधार से ही बिगड़ी हुई चीजें सुधारी जा सकती हैं। नदलेस की पहल पर शुरू हुई इस मुहिम द्वारा तैयार प्रस्ताव पत्र का इसलिए भी ऐतिहासिक महत्त्व है कि दो दलित लेखक संघों वाली गुत्थी को सुलझाने में यह प्रस्ताव पत्र हमेशा ही कारगर और मददगार साबित होगा। इस महत्त्वपूर्ण और ऐतिहासिक कार्यक्रम में क्रमशः रघुवीर सिंह नाहर, उमरशाह, मुकेश मिरोठा, बृजपाल सहज, डा. भानुदास, आर एस आघात, सतेंद्र कुमार, अनुज कुमार, वीरेंद्र कुमार दिवाकर, चितरंजन गोप लुकाटी, बिभाष कुमार, बी एल तोंदवाल, पुष्पा विवेक, आशु अद्वैत, ज्योति पासवान, संतोष पटेल, उमेश राज, मोहनलाल मनहंस, डा. नविला सत्यादास, अंतिमा मोहन, अंजली रंगा, जावेद आलम ख़ान, रिछपाल विद्रोही, अरुण कुमार, राजन तनवर, अमिता मेहरोलिया, डा. गुलाब सिंह और विपुल कुमार भावलिया आदि सम्मिलित रहे।

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