आजादी के मायने??

 स्वतंत्रता दिवस की 75वी वर्षगांठ पर आलेख


-मास्टर हंसराज हंस




भारत देश को आजाद हुए 74 वर्ष हो गए  हैं। आगामी 15 अगस्त 2021 को हम स्वतंत्रा दिवस की 75वी वर्षगांठ  मनाने जा रहे है। 74 वर्ष का कालखंड देखा जाए तो एक लंबा कालखंड हमने गुजारा है। अंग्रेजों को भारत देश से भगाने में भारत वासियों ने अपनी एकता की भावना का परिचय दिया था। सबके सपने थे। हमें आजादी मिले। अंग्रेज यहां से भागे। हमारे देश की शासन की बागडोर हमारे पास आए। हमारी गुलामी दूर हो। इसके लिए सभी ने अपना- अपना संपूर्ण योगदान दिया और उसी का परिणाम है कि हमें 15 अगस्त 1947 को आजादी मिली।


सभी देशवासी अपना जीवन खुशहाली के साथ जिए।इसके लिए सबके अधिकारों व‌ कर्तव्यों की बात हुई। अर्थात हमने देश का शासन चलाने के लिए अपना संप्रभुता संपन्न संविधान बनाया। संविधान में सबको समान अवसर देकर, सबका विकास करने की बात कही गई।


देशवासियों को शासन चलाने वाले अपने जनप्रतिनिधियों से बड़ी अपेक्षा थी। उनके सपने थे कि अब अमीर- गरीब जाति, धर्म व भाषा के झगड़े समाप्त हो जाएंगे। सबको मूलभूत

आवश्यकता रोटी, कपड़ा और मकान मिलेगा।

सबको रोजगार मिलेगा। देश में शांति और खुशहाली आएगी।


हमें हमारा जनप्रतिनिधि चुनने का मौका मिलेगा। सभी जनप्रतिनिधि जनता की सेवा के लिए तत्पर रहेंगे। हमें हमारी बात कहने व आवश्यकतानुसार अपनी मांग रखने की आजादी होगी। महिलाओं को सम्मान, बराबरी का दर्जा दिया मिलेगा। सबको पढ़ने के, आगे बढ़ने के खूब सारे मौके मिलेंगे। 


इस तरह के कई सुंदर सपने देशवासियों ने संजोए रखे थे। धीरे-धीरे समय निकला। हर बार चूनाव में तो नारा जरूर लगाया जाता था।" गरीबी हटाएंगे, देश को बढ़ाएंगे" पर आज 74 वर्ष के बाद भी गरीब नही हटी। देखने पर ना तो सबको कपड़ा, मकान नसीब हुआ है। और नहीं रोजगार मिला है। इसके विपरीत गरीब- अमीर की खाई दिनों दिन दूनी रात चौगुनी होती जा रही है। भाषा,धर्म व जाति के आधार पर वैमनस्य से बढ़ता ही जा रहा है। जनता के सेवक कहलाने वाले राजनेता और कर्मचारी मालिक बन बैठे‌ है। जनता उनकी नौकर हो गई है। महिलाएं सुरक्षित नही है। आए दिन देश में महिलाओं के साथ बलात्कार, यौन उत्पीड़न की घटनाएं बड़े पैमाने पर हो रही है। राजनीतिक व्यवस्था पूंजीपतियों के हाथ में चली गई है।गरीब जनता का कोई सुनने वाला नहीं है। भ्रष्टाचार की पराकाष्ठा हो गई है।यह शिष्टाचार मे बदल गया है। जनता की आवाज को जबरदस्ती दबाया जाता है। कोई अपनी बात नहीं कह सकता और कहे भी तो, कोई सुनने वाला नही है। आम जनता को तो आजादी का कोई खास फर्क महसूस नही हुआ है।बस फर्क पड़ा है तो केवल गोरे अंग्रेजों की जगह काले अंग्रेज आ गए। जनता के विकास में आमूलचूल परिवर्तन नहीं हुआ है। गरीब दिनोदिन बहुत गरीब होते है जा रहे है। जो अमीर थे वे ही दिनोंदिन करोड़पति, अरबपति होते जा रहे है। किसान का बच्चा तो अब भी ऋण में ही पैदा होता है और ऋण में ही मरता है।

लोक सेवकों व राजनेताओं के गठजोड़ ने देश को खोखला कर दिया है। वे तो खुद का विकास करने में पीछे नही है। 5 साल के कार्यकाल में इतनी अकूत संपत्ति इकट्ठी कर लेते है।उनकी सात पीढ़ियों से भी नही बीतगी।


आम जनता तो आजादी से पहले भी रोती थी और आज भी रो रही है।


✍️Tr हंसराज हंस ‌

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