समय पर अपने देय दायित्वों का निर्वाहन करके भी हम अपने देश को आर्थिक संकट से उभार सकते हैं

देश पर छाए इस संकट से देश की अर्थव्यवस्था चरमरा रही है, सरकार के सामने बड़ी चुनौती है। देश में बेरोजगारी और भुखमरी व्याप्त ना होने पाए, जहां सरकार को अपने कुछ कर्मचारियों से काम न लेने के बावजूद भी उनको वेतन देना पड़ रहा है। इसके पीछे सरकार की एक ही मंशा है कि उनके राज्य के कर्मचारी इस महामारी के शिकार ना होने पाए, वहीं दूसरी ओर इन कर्मचारियों ने अपने एक- एक दिन का वेतन सरकार को अनुदान करके सरकार की वित्तीय सहायता करने में कोई कमी नहीं छोड़ी। कुछ कर्मचारियों ने तो 1 दिन के वेतन से अतिरिक्त अन्य धनराशि भी सरकारी राहत कोष में स्वेच्छा से जमा कराई, आज हम भी कुछ अपने निजी दायित्वों का समय से निर्वहन करके सरकार की अप्रत्यक्ष रूप से मदद कर सकते हैं, जैसे सरकार से लिए ऋणों की समय पर अदायगी करके, अपने बिजली के बिलों, अन्य टैक्स , नगरपालिका कर, हेल्थ इंश्योरेंस, लाइफ इंश्योरेंस, आदि महत्वपूर्ण करो की अदायगी कर हम सरकार के राजकोष को भर सकते हैं। इस संकट के समय में सरकार के सामने महत्वपूर्ण चुनौती अपने खजाने को भरना है, ताकि वह इस संकट में आवश्यक आपूर्ति और  चिकित्सा का खर्चा सरलता से उठा सके। आप सबको पता ही होगा कि कोरोना वायरस को हाई टेंमपरेचर में मात्र दी जा सकती है, इस समय हम अपने घरों में एसी , फ्रिज व कुलर का प्रयोग बंद करें दे, केवल पंखे से ही काम चलाएं जो हमारा अंतर बिजली के बिलों में कम आएगा उस अंतर को हम सरकारी कोष में जमा करा कर देश की अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ बनाने में अपनी भूमिका निभाएं। वहीं दूसरी ओर हमारे वाहन घरों में खाली खड़े हैं। उन में लगने वाला पेट्रोल हमारा बच् रहा है क्यों ना हम अपने महीने में लगने वाले इंजन के खर्चो को बचाकर उस धनराशि से सरकार को अनुदान करें। हमें किसी को भी अच्छा नहीं लगेगा कि सरकार को किसी अन्य देशों के सामने अपने हाथ फैलाने पड़े, जबकि हमारी जनसंख्या है 135 करोड़ है। रोज एक- एक व्यक्ति एक -एक रूपया भी सरकारी कोष में डालें तो कल्पना करो कि सरकार के पास एक माह  में कितना धन एकत्र होगा। मैं राज्य में केंद्रीय कर्मचारी से भी अनुरोध करता हूं ,कि जिस प्रकार उन्होंने मार्च माह का 1 दिन का वेतन सरकारी खजाने में अनुदान किया था ।उसी प्रकार अप्रैल माह में भी एक-एक दिन का वेतन सरकारी राजकोष में स्वेच्छा से अनुदान कर देश की अर्थव्यवस्था को बिगड़ने ना दें। हमारा देश इस संकट की घड़ी में सबसे ज्यादा आश अपने नागरिकों से ही लगाए बैठे हैं। आप सब पढ़े-लिखे भारतीय वाशी है , आज देश पर संकट की घड़ी में जातिवाद से ऊपर उठकर कंधे से कंधा मिलाकर देश की अखंडता को बनाए रखें। पुरातन के इतिहास में जब देश पर संकट आया करते थे ,तो वहां की महिलाएं आपातकाल की स्थिति में अपने गहने तक बेच दिया करती थी , यही हमारी देश की प्राचीन संस्कृति व सभ्यता है, हम लड़ेंगे ,झगड़े गे किंतु संकट के समय में हम सब एक हैं। हमारा धर्म एक है हमारी जाति एक है। यही तो भारत की विविधता में एकता की पहचान है। (अवतोष शर्मा स्वतंत्र पत्रकार)


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