क्या बला है कोलेस्ट्रोल


 


भोजन में उपस्थित फैट्स के  आंतों में पहुंचने के बाद, जिगर से स्रावित बाइल(पित्त) द्वारा डाइजेस्ट होने के बाद, खून में मिलकर शरीर के विभिन्न ऊतकों में काम में लाने हेतु बंँट जाता है। खून में यह वसा- टोटल कोलेस्ट्रॉल, ट्राइग्लिसराइड(टीजी), वीएलडीएल, एलडीएल, आईडीएल, एचडीएल इत्यादि विभिन्न रूपों एवं नामों से जाना जाता है। 
शरीर की आवश्यकता से अधिक, एक्स्ट्रा लिपिड खून ले जाने वाली शिराओं के अंदर की दीवारों पर जमने लगता है एवं इन धमनियों को संकरा कर दिल की नसों में खून की सप्लाई को बाधित करता है।


गुड और बैड कोलेस्ट्रॉल क्या है??
ऐसा नहीं कि कॉलेस्ट्रोल की सारी फॉर्म्स ही शरीर के लिए खतरनाक है- एच.डी.एल कोलेस्ट्रॉल, नसों के अंदर जमी अतिरिक्त वसा को वापस जिगर एवं खून में मिला देता है इसीलिए इसे 'गुड(अच्छा) -कोलेस्ट्रोल' कहा जाता है। परंतु इसका स्तर खून में बढ़ाने की कोई कारगर दवा अभी तक उपलब्ध नहीं है । ज्यादातर भारतीयों में इसका स्तर लैब रिपोर्ट में दिये जाने वाले पश्चिमी मानकों के हिसाब से नॉरमल लेवल (45 के ऊपर) से कम ही पाया जाता है (जैसे 20 और 40 के बीच)।


मुख्यतः एलडीएल कोलेस्ट्रॉल ही दिल की नसों के अंदर जमकर ब्लॉकेज पैदा करता है इसीलिए इसे 'बैड(बुरा) -कोलेस्ट्रॉल' कहा जाता है। नई रिसर्च तो एलडीएल पूरे को खराब न मान कर इसके भी कुछ छोटे अवयवों जैसे 'लाइपो-प्रोटीन-ए' इत्यादि को ही खराब मानती है परंतु अब तक इन्हें लैब में जांचने के व्यावहारिक और सस्ते तरीके आसानी से उपलब्ध नहीं हैं। 


'ट्राइग्लिसराइड' क्या होता है?                यह एक न्यूट्रल टाइप का कॉलेस्ट्रोल है, ना-गुड ना-बैड, जब तक खून में इसका स्तर बहुत ज्यादा ना हो (500 से भी ऊपर) तब तक इससे घबराने या दवा से इसे कम करने की जरूरत भी नहीं होती है, हालांकि बाजार में दी जाने वाली कॉलेस्ट्रोल की रिपोर्ट में इसके थोड़ा सा बढा होने पर (जैसे कि 200-300) ही, इसे काला एवं बोल्ड कर दिया जाता है। कई बार तो कुछ डॉक्टर मरीज के भय को कम करने के लिए इसकी दवा भी जल्दी शुरू कर देते हैं।


क्या केवल कॉलेस्ट्रोल 'हार्टअटैक' के लिए जिम्मेदार है ?   
हार्ट की नसों में ब्लॉकेज के कारण - हाई शूगर-बीपी, बीड़ी- सिगरेट, पान-मसाला-तंबाकू का सेवन, तनाव युक्त भागमभाग वाली असंतुलित शहरी जिंदगी, शारीरिक व्यायाम की कमी, सीडेंटरी लाइफ़स्टाइल एवं बेडौल भारी शरीर, कम मात्रा में ताजे फलो-सब्जियों का सेवन, कम उम्र में हार्ट-अटैक की फैमिली-हिस्ट्री, अधिक वसा युक्त खानपान जैसे मीट,अंडे, वनस्पति घी एवं कुछ प्रकार के कोलेस्ट्रोल का बढा होना होते हैं। इनमें से जितने ज्यादा कारण(रिस्क फैक्टरस्) किसी व्यक्ति में हैं, उसे हार्ट-अटैक होने की उतनी ज्यादा संभावना बढ जाती है। ज्यादातर हार्टअटैक के मरीजों में एक से ज्यादा रिस्क फैक्टर होते हैं।अगर केवल कोलेस्ट्रॉल, वह भी बहुत ज्यादा गड़बड़ नहीं है तो नसों में ब्लॉकेज की संभावना बहुत कम रहती है। कई बार कॉलेस्ट्रोल का दुष्प्रचार इसे कम करने की दवा बनाने वाली कंपनियों द्वारा भी  देखा गया है। 


रिपोर्ट में कितना कोलस्ट्रोल सही है?
अगर किसी को हार्ट की बीमारी पहले से है तो एलडीएल का स्तर 100 के नीचे रखना बेहतर है, अगर कोई रिक्स फैक्टर भी नहीं है तो लगभग 190 के नीचे रखना बेहतर है, अगर शुगर बीपी, हार्ट की फैमिली हिस्ट्री इत्यादि रिस्क-फैक्टर हैं तो इसे लगभग 130 के नीचे ही रखने की सलाह दी जाती है। जिन लोगों मे कोलेस्ट्रोल का नार्मल स्तर होने के बाद भी 'हार्ट-अटैक' हो जाए या होने की संभावना बहुत ज्यादा हो(कईं सारे रिस्क फैक्टर्स हों) वहां दवाएं चला कर उसे शुरुआती स्तर से 50% तक कम करने की कोशिश की जाती है। 
जब तक ट्राइग्लिसराइड का स्तर 500 ना हो, तब तक पहले इसे बिना दवाओं के, उचित खानपान, हेल्दी-लाइफस्टाइल द्वारा ही कम करने की सलाह दी जाती है।
जो लोग कोलेस्टोल की दवा लेते हैं उन्हें इसका स्तर 3 से 6 महीने या 1 साल में अपने रिस्क-फैक्टर के अनुसार चैक करा लेना चाहिए जिससे की दवा कम या बंद की जा सके।


कौन सा घी-तेल यूज़ करें? ज्यादातर कंपनियां दिल के रोगों के प्रति जनरल पब्लिक में फैली असुरक्षा की भावना का मनोवैज्ञानिक लाभ उठाकर विभिन्न प्रकार के तथाकथित कार्डियो-प्रोटेक्टिव आयल्स टीवी के माध्यम से मार्केट में उतारती है जबकि शुद्ध सरसों का तेल एवं गाय का देसी घी, कम मात्रा में ही दिल के मरीजों के लिए प्रयाप्त है। 


बढ़े कोलेस्ट्रॉल को कैसे कम करें?
वसा युक्त खानपान जैसे वनस्पति-घी, मलाई-मक्खन, ज्यादा ऑय्ली खाना,मीट-अंडे से दूरी एवं फाइबर युक्त मौसम के ताजे फल-सब्जियों का उपयोग, लहसुन, काले चने, ईसबगोल की भूसी, छाछ-मठ्ठे इत्यादि के उपयोग के साथ-साथ हल्का शारीरिक व्यायाम जैसे सुबह घूमना, मोटापा कम कर,वजन को नियंत्रित करने से बिना दवाओं के कोलेस्ट्रोल को काफी हद तक  कंट्रोल किया जा सकता है। अगर फिर भी कॉलेस्ट्रोल अनियंत्रित रहे तो अटोरवा-स्टैटिन या रोसुवा-स्टैटिन दवाई दी जाती हैं।



 
डॉ अनुभव सिंघल
एमडी, मेडिसिन (गोल्ड-मेडल) डीएम, कार्डियोलॉजी (एसजीपीजीआई, लखनऊ) विभागाध्यक्ष- हृदय रोग विभाग, सुभारती मेडिकल कॉलेज, मेरठ


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