लॉकडाउन से दिखे पर्यावरण में सुधार के संकेत -असली स्वरुप में नजर आने लगी प्रकृति 

रविता
मुजफ्फरनगर।कहते है जो होता है अच्छे के लिए होता है...कोरोना वायरस के कारण भारत में हुए लॉकडाउन के कारण जहां लोग घरों में कैद हो गए...उद्योग धंधों बंद हो गए...यहां तक की लोग भूखे मरने की कगार पर आ गए....वहीं इस दौरान प्रकृति अपने असली स्वरुप में नजर आने लगी है। देश में 21 दिन के हुए देशव्यापी लॉकडाउन के बाद प्रदूषण में भारी गिरावट देखी गई, और वातावरण साफ नजर आय़ा।
जानकारी के अनुसार विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी भारत की हवा को दुनिया की सबसे जहरीली हवा बताया। बढ़ते वायु प्रदूषण से लोगों में सांस की बीमारियां बढ़ रही थी और कैंसर का खतरा भी मंडरा रहा था। ऐसे में सर्कार से ही उम्मीद की जा सकती है कि कुछ ऐसे कठोर कदम उठाए जिससे वातावऱण में कुछ सुधार हो।
लेकिन दुनिया के हर देश की सरकारें ढोंगी हैं, ये सरकारें प्रदूषण को लेकर ढोंग रचती रहती हैं, ताकि इसके असल कारणों पर लोगों का ध्यान ही न जाये। सरकारें प्रदूषण की बड़ी वजहों को नजरअंदाज करती रही, साल में एक बार आने वाली दिवाली के पटाखों पर शोर मचाया जाता है, लेकिन सालों-साल प्रदूषण के बड़े-बड़े अजगरों को पाला-पोसा जाता है। परिवहन, निर्माण और ऊर्जा के लिए ईंधनों (कोयला, तेल, लकड़ी) का जलना, ये ऐसे स्रोत हैं, जिनसे प्रदूषण के अजगर जन्म लेते हैं और ये तीनों चीजें हमारे शहरों में तेजी से बढ़ रही हैं, चूंकि इन्हें ही विकास का पहिया मान लिया गया है पर्यावरण और प्रदूषण को लेकर हमारी सरकारी नीतियां इन्हीं के ईद-गिर्द घूमती हैं और सरकारें ग्रोथ का रोना रोती रहती है।
शब्दों का ऐसा मायाजाल बुनकर हमारे नीति-निर्धारकों ने प्रदूषण जैसी गंभीर समस्या को गंभीरतम बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है, टिकाऊ पर्यावरण को लेकर भारत के पुराने पर्यावरण एक्ट में बहुत महत्वपूर्ण बात यह थी कि फैक्टरी खोलने, उद्योग लगाने, बांध बनाने, सड़कें बनाने या पुल बनाने में स्थानीय जनता की सहमति होनी चाहिए और उनका विस्थापन नहीं होना चाहिए। लेकिन, इस एक्ट में संशोधन करके कहा गया कि पर्यावरण अब विकास में बाधक नहीं है, उनके टिकाऊ विकास में पर्यावरण बाधा ही न बन पाये, इसलिए सरकार ने एक्ट में बदलाव कर दिया। यही वजह है कि देशभर में तमाम प्राकृतिक संसाधनों का बेतहाशा दोहन होता गया और प्रदूषण व जल-संकट की स्थितियां पैदा हो रही।
प्राप्त जानकारी के अनुसार श्वशन प्रक्रिया में हम अपनी नाक या मुँह के रास्ते से हवा को अंदर खींचते हैं और फिर इसी तरह बाहर छोड़ते हैं। जब हम हवा को अंदर खींचते हैं तो इसमें मुख्यतः 79 प्रतिशत नाइट्रोजन, लगभग 21 प्रतिशत ऑक्सीजन तथा 0.04 प्रतिशत कार्बन-डाइ-ऑक्साइड होती है। सामान्य तौर पर शरीर में ऑक्सीजन का स्तर 95 से 100 प्रतिशत तक होता है। जब शरीर में ऑक्सीजन का स्तर 90% से नीचे जाता है तो उसे ऑक्सीजन की कमी माना जाता है। 
वही सर्दियों में मुजफ्फरनगर देश के सबसे प्रदूषित शहरों में शामिल हो गया था। यहां पर एयर क्वालिटी इंडेक्स 400 तक पहुंच गया था जो बेहद खतरनाक स्तर होता है। लॉकडाउन के चलते प्रदूषण फैलाने वाली इकाइयां बंद हैं। वाहन भी सड़कों पर नहीं चल रहे हैं। इसके चलते आसमान एकदम साफ हो गया है। लोगों को सांस लेने के शुद्ध हवा मिल रही है। बीते कई दिनों से एयर क्वालिटी इंडेक्स मध्यम श्रेणी में है। जबकि पिछले साल इन्हीं दिनों एक्यूआई 298 से 300 तक था।  जिले का एयर क्वालिटी इंडेक्स 
दिनांक 2020 2019 
04 अप्रैल 75 298
03 अप्रैल 71 219
02 अप्रैल 65 268
01 अप्रैल 56 141
31 मार्च 68 182।।।।


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