मेडिकल कालेज अस्पताल में हेपेटाइटिस सी का इलाज शुरू, पहले दिन 15 मरीजों की जांच हुई ,अब तक जिला अस्पताल में हेपेटाइटिस क्लीनिक में होता था इलाज

!संजय वर्मा!


  मेरठ । लाला लाजपत राय मेडिकल कालेज अस्पताल में हेपेटाइटिस सी का उपचार बुधवार से शुरू हो गया है। अब तक जिला अस्पताल में एक एनजीओ के माध्यम से हेपेटाइटिस सी क्लीनिक चलता था। मुख्य चिकित्सा अधिकारी डा. राजकुमार ने बुधवार को इसका शुभारंभ किया। इस अवसर पर उन्होंने बताया पहले जिला अस्पताल में एक गैर सरकारी संगठन हेपेटाइटिस सी का क्लीनिक चलाता था। इस बीमारी के मरीजों की बढ़ती संख्या के देखते हुए केन्द्र सरकार ने इसे मेडिकल कालेज की माइक्रो बायोलॉजी लैब में बड़े स्तर पर शुरू किया है। इस तरह के प्रदेश में तीन सेन्टर मेरठ, लखनऊ व बनारस में खोले गये हैं। उन्होंने बताया जांच और उपचार की व्यवस्था मेडिकल कालेज में रहेगी, लेकिन इसकी दवा जिला अस्पताल में ही मिलेंगी।
मेडिकल कालेज के प्राचार्य डा. आरसी गुप्ता ने बताया मेडिकल कालेज में हेपेटाइटिस का उपचार केन्द्र खुलने से बड़ी संख्या में मरीजों को लाभ मिलेगा। हर माह करीब तीन से चार हजार मरीज आने की संभावना है। यहां मेरठ, बागपत,शामली, मुजफ्फरनगर, बिजनौर, गाजियाबाद, हापुड़, बुलंदशहर, गौतमबुद्ध नगर और सहारनपुर जिले के मरीज उपचार करा सकेंगे।
माइक्रो बायोलॉजी लैब प्रभारी डा. अमित गर्ग ने बताया अब स्वास्थ्य मंत्रालय के राष्ट्रीय वायरल हेपेटाइटिस नियंत्रण कार्यक्रम के तहत हेपेटाइटिस सी के मरीजों का इलाज किया जाएगा। उन्होंने बताया हेपेटाइटिस सी को काला पीलिया भी कहते हैं। यह एक संक्रामक रोग है, जो हेपेटाइटिस सी वायरस (एचसीवी) की वजह से होता है और यकृत (लिवर) को प्रभावित करता है। यह वायरस रक्त से रक्त के सम्पर्क से फैलता है। उपचार व देखभाल से यह रोग ठीक हो जाता है। उन्होंने बताया हेपेटाइटिस सी के मरीज दो प्रकार के होते हैं। एक वह जिनमें वायरस पूरी तरह फैल चुका होता है, उन्हें हेपेटाइटिस का मरीज माना जाता है। दूसरे ऐसे मरीज होते हैं, जिनके रक्त में हेपेटाइटिस के वायरस होते हैं, लेकिन आसानी से लक्षण का पता नहीं चल पाते हैं। इन्हें हेपेटाइटिस कैरियर कहा जाता है। ऐसे मरीजों को हेपेटाइटिस की दिक्कत नहीं होती है, लेकिन ऐसे मरीज का रक्त दूसरे व्यक्ति को चढ़ाने से यह वायरस तेजी से संक्रमण करता है। डा. गर्ग ने बताया पहले दिन हेपटाइटिस सी के 15 मरीजों की जांच की गयी। 


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