गुर्जरों ने उठाई आवाज़ - अयोध्या के प्रस्तावित राम मंदिर ट्रस्ट में हमे भी किया जाए शामिल

 


 


शाहवेज़ खान


मेरठ। राम मंदिर के निर्माण का रास्ता साफ होते ही अब उसके ट्रस्ट में शामिल होने के लिए कई समाज आवाज़ उठाने लगे है। सोमवार को गुर्जर महासभा के राष्ट्रीय प्रवक्ता विनय प्रधान ने बताया कि महासभा की और से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक पत्र भेजा गया है जिसमे अयोध्या में बनने वाले राम मंदिर के ट्रस्ट में गुर्जर समाज की भागीदारी शामिल करने की मांग की गई है। उन्होंने कहा कि कोर्ट ने भी अपने बयान में कहा है कि खुदाई में ऐसी चीज़ें मिली थी जो गुर्जर प्रतिहार युग को दर्शाती है।उन्होंने कहा कि भारत के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा अयोध्या के श्री राम जन्म भूमि को लेकर के ,दिए ऐतिहासिक फैसले में पुरातत्व विभाग की रिपोर्ट को बहुत ही महत्वपूर्ण माना गया और इसी रिपोर्ट को मद्देनज़र रखते हुए , सर्वोच्च न्यायालय द्वारा अयोध्या के श्री राम जन्म भूमि को लेकर के दिए ऐतिहासिक फैसले में इतिहास की कुछ कड़ियों का राज़ बाहर निकल कर आया हैं। 
पुरातत्व  विभाग की रिपोर्ट में कहा गया हैं कि खुदाई में 13वीं शताब्दी ईसा पूर्व तक के अवशेष मिले हैं। उनमे कुषाण , शुंग , गुप्त कल , गुर्जर प्रतिहार आदि युग तक के अवशेष हैं। गोलाकार मंदिर 7वीं शताब्दी से 10वीं शताब्दी गुर्जर प्रतिहार कालीन युग के बीच माना  गया।  प्रारंभिक मध्य युग के अवशेषों में 11-12 वीं शताब्दी की 50 मीटर उत्तर - दक्षिण ईमारत का ढांचा मिला। इसके ऊपर ही एक और विशाल ईमारत का  ढांचा मिला हैं, जिसका फर्श तीन बार में बना। यह  रिहाशी इमारत  न होकर कर के सार्वजानिक उपयोग में की गयी इमारत  थी| रिपोर्ट के अनुसार , इसी के भग्नावशेष पर वह विवादित इमारत  13वीं शताब्दी में बनी। स्टीम के सारे और और कोई जूलॉजिकल सर्वे के अधिकारी की के मोहम्मद जी ने अपने ने माना है कि जी मंदिर का निर्माण गुर्जर प्रतिहार राजा द्वारा कराया गया था समाज आपसे निवेदन करता है कि जो ट्रस्ट बनाया जाए उसमें गुर्जर समाज का भी एक प्रतिनिधि चाहे वो राजनीतिज्ञ हो चाहे समाजसेवी हो चाहे वो इतिहासकार हो उसे भी शामिल किया जाए 12 सदी में जब इसका निर्माण हमारे पुरखो द्वारा किया गया तो एक प्रतिनिधि समाज का भी इस ट्रस्ट में होना चाहिए । प्रथम शताब्दी ईसवी के अंतिम चतुर्थ भाग में समाप्ति के लगभग गुर्जर कुषाण कनिष्क ने सम्पूर्ण उत्तरी भारतवर्ष , जिसमे हरदोई जनपद भी शामिल था, अपने राज्य  के अधीन कर लिया। अगले डेढ़ शताब्दी तक कुषाण गुर्जरों ने इस क्षेत्र पर राज्य किया। कुषाण नरेशों के अनन्तर अयोध्या के मित्र नरेशों ने इस क्षेत्र पर राज्य किया। बाद में गुप्त वंश के अधिपत्य के कारण इस क्षेत्र पर गुप्तों का भी शाशन रहा। बाद में गुर्जर प्रतिहारों के उत्तरी भारत में अपना शासन स्थापित कर लेने के बाद ,9वीं शताब्दी से लेकर के 11वीं  शताब्दी  पर्यन्त गुर्जर प्रतिहार राजाओं के आधिपत्य में रहा।एक महत्वपूर्ण बात ये हैं कि गुर्जर प्रतिहार राजाओं ने खुद श्री राम के भाई लक्ष्मण का वंशज कहा हैं। और इनकी राजधानी उत्तर प्रदेश के कन्नौज रही हैं। मध्य कालीन युग के ज्यादातर मंदिर गुर्जर प्रतिहारों व गुर्जरों के दूसरे राजवंशो द्वारा निर्मित हैं, चाहे वो गवालियर का तेली मंदिर हों , खजुराहों का मंदिर , मुरैना के स्थित बटेश्वर मंदिर की श्रृंगखला , भोजेश्वर मंदिर , गुर्जर प्रतिहार कालीन ओसियान  जैन मंदिर , गुर्जर देव मंदिर उत्तराखंड , चौसठ योगिनी मंदिर इत्यादि बना गए समस्त मंदिर गुर्जर प्रतिहार कालीन हैं, जो हमारे पुरखों की धरोहर हैं। इसलिए राम मंदिर के लिए बनने वाले ट्रस्ट में गुर्जरों समाज को भी जगह मिलनी चाहिए।


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