किशोर-किशोरियों के साथी बनेंगे “साथिया केंद्र”

(रविता)
मुजफ्फरनगर। किशोरावस्था (10 -19 वर्ष) एक परिवर्तनशील वृद्धि तथा विकास की एक बहुत ही महत्वपूर्ण अवस्था होती है। इस अवस्था में शारीरिक एवं मानसिक बदलाव बहुत तीव्रता से होते हैं और किशोर-किशोरी यौन, मानसिक तथा व्यवहारिक रूप से परिपक्व होने लगते हैं। इस दौरान किशोर-किशोरियों की समस्याओं में विभिन्नता के साथ-साथ जोखिम भी अलग-अलग होते हैं। इसलिए किशोर स्वास्थ्य क्लीनिक का नाम बदलकर “साथिया केंद्र” जल्द ही कर दिया जायेगा । जिला  महिला अस्पताल में संचालित इस केंद्र में अप्रैल 2019 से अब तक लगभग 7512  किशोर-किशोरियों ने पंजीकरण कराकर अपनी समस्याओं को साझा किया। विशेषज्ञों द्वारा इनका समाधान भी कराया गया।
अपर मुख्य चिकित्साधिकारी डा. प्रवीण चोपड़ा ने बताया कि किशोर -किशोरियों को परामर्श, स्वास्थ्य शिक्षा प्रदान करने के लिए किशोर स्वास्थ्य क्लिनिक अब नए कलेवर में “साथिया केंद्र” के नाम से जल्द स्थापित किये जायेंगे । जिला अस्पताल में प्रशिक्षित परामर्शदाताओं द्वारा किशोर-किशोरियों के स्वास्थ्य विषयों पर परामर्श की समुचित सेवाएं मिल रही हैं। इससे उनके जीवन में बड़े बदलाव भी देखने को साफ मिल रहे हैं। ग्रामीण एवं शहरी क्षेत्रों में स्वास्थ्य केन्द्रों पर तैनात एएनएम और हेल्थ एंड वेलनेस सेंटर पर तैनात कम्युनिटी हेल्थ आफिसर से भी संपर्क कर किशोर स्वास्थ्य से जुड़े हर मुद्दों को आसानी से सुलझाया जा सकता है। प्रजनन स्वास्थ्य को लेकर भी किशोर किशोरियों के तमाम उत्कंठाएँ होती हैं जिनके बारे में सही जानकारी वह चाहते हैं । उन्होंने कहा कि मिशन निदेशक का पत्र मिलने के बाद यहां जिला अस्पताल में संचालित किशोर स्वास्थ्य क्लीनिक का नाम परिवर्तित करने की प्रक्रिया चल रही है । अब यह साथिया केंद्र के नाम से जाना जायेगा । केंद्र में अप्रैल 2019 से अब तक 7512 किशोर और किशोरियों ने पंजीकरण कराया है।
राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन-उत्तर प्रदेश के महा प्रबन्धक-किशोर स्वास्थ्य डॉ. मनोज कुमार शुकुल  का कहना है कि वर्तमान में प्रदेश में कुल 344 साथिया केंद्र क्रियाशील हैं। इन किशोर स्वास्थ्य क्लिनिक (ए.एफ.एच.एस.सी.) पर अप्रैल 2019 से दिसंबर 2019 तक 13.58 लाख किशोर-किशोरियों द्वारा अपना पंजीकरण कराकर परामर्श एवं क्लिनिकल सेवाएं प्राप्त की गयी हैं। करीब 81000 किशोरियों ने माहवारी से सम्बंधित समस्याओं के बारे में जानकारी ली है। दूसरी ओर 1.5 लाख से अधिक किशोरों ने यौन रोगों, परिवार नियोजन के संसाधनों और यौनाचार से पीड़ित किशोरों ने इन केन्द्रों पर संपर्क साधा है।
नजरंदाज न करें, समस्या को सुलझाएं
जिला महिला अस्पताल में तैनात सीएमएस अमिता गर्ग ने बताया कि किशोरावस्था के दौरान माता-पिता को भी बच्चों की समस्याओं को सुलझाने का प्रयास करना चाहिए। उनकी समस्याओं को धैर्य पूर्वक सुनें और उचित सलाह दें न कि नजरंदाज करें। टालने और नजरदांज करने से माता-पिता एवं युवाओं की प्रतिक्रियाएं उनके आपसी स्नेहपूर्ण तथा जिम्मेदार संबंधों में स्वस्थ लैंगिक विकास के विषय में संवाद को मुश्किल बनाते हैं। किशोर-किशोरियां तनाव में आकर डिप्रेशन का भी शिकार हो जाते हैं। मानसिक रोग बन जाते हैं। समय-समय पर उनसे बात करने से काफी हद तक भी इससे बच्चों को बचाया जा सकता है।


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